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________________ (३४३) श्रीनंदीषेणनी पेठे दमा सहित तप करवु ॥ इति तप उपर नंदिषेणमुनी कथा ॥ ४ ॥ हवे शुजनावनो उपदेश करे. शार्दूलविक्रीडितकृत्तम्यम् ॥ नीरागे तरुणी-कटादित मिव त्यागव्यपेतप्रनौ, सेवाकष्टमिवो परोपणमिवांनो जन्मनामश्मनि॥ विष्वग्वर्षमिवोषरदितितले दानाईदर्चातपः, स्वाध्यायाध्ययनादि निःफलमनुष्ठानं विना नावनाम् ॥ ५॥ अर्थः-(जावनां विना के ) एक शुजनावनाविना ( दानाईदर्चा के ) सुपात्र दान, जिनपूजन, अने (तपःस्वाध्यायाध्ययनादि के०) तप, स्वाध्यायर्नु अध्ययन तेज ने श्रादिमां जेने एवं (अनुष्ठानं के०) अनुष्ठान ते सर्व( निःफलं के) निष्फल थाय ने. केनी पेठे ? तो के ( नीरागे के० ) रागरहित एवा पुरुषने विषे ( तरुणीकटादितमिव के०) युवतीकटाद विदेपज जेम, एटले नीरागी पुरुषने जेम स्त्रीना कटादनो विदेप व्यर्थ थाय . तेम श्राहिं
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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