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(३१०) नीचगामी थर बे. कारण के लक्ष्मीनी उत्पत्ति समुपजलथीज डे अर्थात् समुज्जल पिता होवाथी ते नीचगामी . वली लदमी (कापि के०) कोश पण ( पदं के०) स्थानकने (न धत्ते के०) नथी धारण करती. केम के, (अंजोजिनीसंसर्गात् के० ) कमलिनीना संयोगथकी ( कंटकाकुलपदाश्व के) कांटायें करी व्याप्त ने पग जेना एवीज जाणीयें होय नही एटले जेम कोश्ने कांटा वाग्या होय तेने पीडा होवाथी क्यांय पग मांमी सके नहीं तेम लदमी पण एकस्थलें रहेती नथी. वली लक्ष्मी ( नृणां के० ) मनुष्योना ( चैतन्यं के० ) ज्ञानने (अंजसा के० ) अनायासें करी (उजासयति के०) गमावे ने शा माटें ? तो के ते ( विषसन्निधेरिव के) विषना सन्निधिपणा थकीज जाणीयें होय नही कारण के विषतुं अने लक्ष्मी, स्थानक एक समुज्ज . (तत् के०) ते कारणमाटें ( गुणिनिः के०) गुणिजनोयें ( धर्मस्थाननियोजनेन के ) धर्मस्थानमां तेना व्ययने करवे करी (अस्याः के०) श्रा लक्ष्मीनु ( फलं के० ) फल. ( ग्राह्यं के०) ग्रहण करवायोग्य . अर्थात् पुण्यकार्यमा जे लदमी