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________________ () यः के० ) गश् कृपा जेने एवो बतो ( धर्म के ) पुण्यनी श्छा करे ? एम जाणवू. तथा ते (च्युतनयः के०) गतन्याय एवो उतो ( यशः के० ) यशनी श्छा करे ? अर्थात् अन्यनो अपकारक तो कीर्तिनी श्छाकरे ? वली (प्रमत्तः के०) बालसु बतो (वित्तं के०) धननी श्छा करे ? वली (निःप्रतिनः के ) निर्बुफि उतो ( काव्यं के०) काव्य करवानी श्छा करे ले ? वली (शमदयाशून्यः के०) उपशम अने दयायें रहित तो (तपः के०)तपनी श्छा करे . वली (अल्पमेधाः के०) अल्पबुद्धिमान् उतो ( श्रुतं के०) शास्त्रने नणवानी श्वा करे . वली (अलोचनः के०) नेत्ररहित बतो (वस्त्वालोकं के ) घटपटादिक वस्तुने जोवाने श्छे डे. (च के०) वली (चलमनाः के) चंचल चित्त एवो बतो ( ध्यानं के० ) एकाग्रध्याननी श्छा करे बे. अर्थात् पूर्वोक्त वस्तु विना प्रथम कहेला पदार्थों ते प्राणीने प्राप्त थाय नही तेम गुणिना संगविना कल्याण प्राप्त थाय नहीं ॥ ६५ ॥ टीकाः-अथ गुणिसंगं वर्णयति ॥ धर्ममिति ॥ यो विमतिः निर्बुधिणिनां गुणवतां मनुष्याणां संगं
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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