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(१७) पर्यंत तमें माहारा दास थश्ने रहो. बन्ने जणे एवी प्रतिज्ञा करी, आगल चालता कोश्क गामें जश पहोता. तिहां घणा महोटा लोकोनां टोलामांहे जश पूबवा लाग्या के ना ! सुखश्रेय पामीये ते पुण्यश्री किंवा पापथी ? ए प्रश्नवचन सांजलीने लोको बोव्यां के ना ! दमणां तो पापज सुखहेतु डे, अने पुण्यश्री दय थाय , एवं सांजली बेहुजण आगल चाट्या मार्गमां ललितांगकुमरने सऊन हांसी पूर्वक कहेवा लाग्यो के अहो कुमर ! हवे तमें घोडा उपरथी उतरी चाकर थश्ने महारी आगल चालो. पोतानी प्रतिज्ञा पालो. एवं वचन सांजली कुमर घोडाथी नीचे उतरी सझन प्रत्ये कडेवा लाग्यो के हे मित्र ! हुं सर्वदा ताहरो सेवकज बु. ए असार धननी शोजा कारमी ले तेनी काश्मने गरज नथी. मने तो एक धर्मज निश्चल था. एम कही सेवक थश्थागल चाल्यो भने सङान घोडा उपर चढ्यो. आगल चालतां वली कुमरप्रत्ये कहेवा लाग्यो के हे कुमर ! श्रीजिनधर्मना फल जोगवो केहवां ? हुँ तमोने हजी पण कडं बुं, के तमें तमारो कदाग्रह मूकीने पाप चोरादिक कर्म करो, ते शिवाय
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