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________________ ( २२४ ) जिम लता विहं ॥ कोप काज सब हरै, पवन जिम जलधर खं ॥ संचरत कोप दुख उपजै, बढै तृषा जिम धूपमहं ॥ करुना विलोप गुन गोप जुत, कोप निसिद्ध महंत कह ॥ ४८ ॥ कथा : - क्रोधत्याग उपर गजसुकुमारनी कथा ॥ सौराष्ट्रदेशें द्वारिका नगरी बे, तिहां कृष्णवासुदेव राज्य करे बे. एकदा देवकीजीयें गवादें बेठां थकां कोइ स्त्रीने पोताना बालकने रमाडती दीवी, ते जोइनें मनमां चिंतव्युं जे मुऊने पुत्र होय तो हुं पण दुलराखुं ? एम धारी चिंतातुर थर रही. तिहां श्रीकृष्ण चिंतानुं कारण पूब्युं देवकीजीयें बलात्कारथी पोतानुं लिषित कयुं. पढी माताने संतोषी पोषधशालायें यावी श्रम तप करी हरणीगमेषी देवता आराध्यो, ते प्रसन्न थइने कड़ेवा लाग्यो के तमारी माताने पुत्र थाशे, पण ते यौवनावस्थामां दीक्षा लेशे पछी देवप्रजावें नवमासें देवकीजीने पुत्र थयो, गजसुकुमार नाम दीधुं. अनुक्रमें सकलकला जाण्यो, यौवनावस्था पाम्यो, सोमिल ब्राह्मणनी पुत्री परण्यो, एवामां श्रीनेमिनाथ समोसख्या, तेमनी पासेंथी उपदेश सांजली माताने स- ·
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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