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________________ (१०) अधीरजको बाल मित्त, माहामोहराजकी प्रसिद्ध राजधानी है ॥ जमको निधान पुरध्यानको विला. सवन, विपत्तिको थान अनिमानकी निसानी है॥ पुरितको खेत रोग सोग उतपति देत, कलह निकेत उरगतिको निदानी है ॥ ऐसो परिग्रह लोग सबनको त्याग जोग, श्रातमगवेषी लोग याकीनांति जानी है ॥४३॥ वली पण परिग्रहना त्यागने कहे . वन्हिस्तृप्यति धनैरिद यथा नांनोनिरंजोनिधि,स्तन्मोदघनो घनैरपिधनैर्जतुर्न संतुष्यति।न त्वेवं मनुते विमुच्य विनवं निः शेषमन्यं नवम्, यात्यात्मा तदहं मुधैव विदधाम्येनांसि नूयांसि किम् ॥४४॥ अर्थः-( वन्दिः के० ) अग्नि, ( श्ह के० ) श्रालोकने विषे ( यथा के०) जेम (घनैरपि के) घ. णा एवां पण (इंधनैः के०) काष्टोयें करीने (न के ) नहि ( तृप्यति के० ) तृप्ति पामे बे. वली (अंजोनिः के ) जलोयें करीने (अंजोनिधिः के०) समुज जेम ( न के) नथी तृप्ति पामतो (तछ
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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