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________________ (१६०) न, मंगल नीति पुनीत मग ॥ सुख रासि बनारसि दास ननि, सत्य वचन जयवंत जग ॥ ए॥ ॥ शिखरिणीटत्तम् ॥यशो यस्मानस्मीनवतिवनवह्नरिव वनम्,निदानं फुःखानां यदवनिरुदाणां जलमिव ॥ न यत्र स्याबायातप इव तपःसंयमकथा, कथंचित्तन्मिथ्यावचनमनिधत्ते न मतिमान् ॥ ३०॥ अर्थः-( मतिमान् के०) बुद्धिमान् पुरुष, (कथंचित्के० ) को वखत कष्ट श्रावे बते पण ( तन्मिथ्यावचनं के०) ते मिथ्यावचन एटले असत्य वचन तेने (नअनिधत्ते के ) नहिं बोल्यो ने ते केम नथी बोलता ? तो के ( यस्मात् के ) जे मिथ्यावचनथकी ( यशः के० ) कीर्ति, ते ( जस्मीनवति के० ) जस्म थाय , अर्थात् नाश पामे जे. के. नी पढ़ें ? तोके ( वनवन्हेः के०) दावाग्निथकी (वनमिव के० ) वनज जेम. अर्थात् वनाग्नि थकी जेम वन दाह पामे ने तेम मिथ्यावचनथकी कीर्ति नाश पामे बे. वली ते मतिमान् पुरुष क्यारें पण केम मिथ्या वाक्य नथी बोलता? तो के ( यत्
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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