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धर्म, अर्थ अने काम, तेना साधननी (अंतरेण के०) विना ( नरस्य के० ) मनुष्यनुं (थायुः के०) श्रायुष्य ( पशोरिव के) नागादिकनी पो ( विफलं के०) निःफल जाणवू. अर्थात् धर्म, अर्थ, काम अने मोद ए चार जे पुरुषार्थ डे तेमां हाल जरतखंगमां मोद तो साधवाने शक्य नथी, ए का. रण माटे शेष धर्म, अर्थ श्रने काम, ए त्रणना उ. पार्जन विना नर जे मनुष्य तेनुं जीवितव्य पशुनी पढ़ें विफल जाणवू. हवे त्यां आशंका करे बे के ते धर्म अर्थ अने काम, ए त्रणे समान बे के कांश तेउमां अंतर बे ? तो त्यां कहे जे, के (तत्रापि के०) ते त्रण वर्गमां पण (धर्म के ) धर्मने (प्रवरं के०) श्रेष्ठ, ( वदंति के० ) कहे . ( यत् के० ) जे का. रण माटे (तं के०) ते धर्म ( विना के०) विना (अर्थकामौ के० ) अर्थ श्रने काम (न के०) नहिं (नवतः के० ) होय बे. कारण के जेणे पूर्वजन्में धर्म कस्यो ने तेनेज अर्थ, काम, था जन्ममां प्राप्त थाय . तेमाटें त्रणवर्गमा जे धर्म , तेज श्रेष्ठ ने. तेथी हे जव्यप्राणीयो ! मनने विषे विवेक लावीने श्रीसर्वज्ञप्रणीत धर्मज आचरण करवो. धर्माचरण