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________________ (१०५) बंधु सबी जन, मीत हितू सुख कामिनी फीके ॥ सेवकराजि मतंगज वाजि, महा दल साजि रथी रथ नीके ॥ उर्गति जाइ पुःखी विललाइ, परै सिर श्रा अकेल हि जीके ॥ पंथ कुपंथ गुरू समुजावत, और सगे सब स्वारथहीके ॥१५॥ हवे गुरुनी श्राझार्नु माहात्म्य कहे बे. ॥शार्दूलविक्रीडितहत्तम् ॥ किं ध्यानेन नवत्ववशेषविषयत्यागैस्तपोनिः कृतम्, पूर्ण जावनयाऽलमिडियदमैः पर्याप्तमाप्तागमैः॥ किं त्वेकं नवनाशनं कुरु गुरुप्रीत्या गुरोः शासनम्, सर्वे येनविना विनाथबलवत् स्वार्थाय नाऽलं गुणाः॥१६॥ इति वितीय गुरुसेवनप्रक्रमः॥२॥ अर्थः-हे जव्यप्राणी ! गुरुनी आज्ञा विना (ध्या नेन के० ) ध्यान करवाश्री (किं के० ) शुं ? तो के काहिं नहिं. तथा (अशेष विषय के०) समस्त विषयो, तेना ( त्यागैः के० ) त्यागें करीने (जवतु के०) हो एटले संपूर्ण थयुं, अर्थात् समस्त विष
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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