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________________ ( २६०) उप्पाय द्विइ भंगाइ पज्जयाणं जमेगवत्यु मि । नाणानयाणुसरणं पुनगय-सुयाणुसारेणं ।।७७।। सविचारमत्थवंजण जोगंतरओ तयं पढमसुक्कं । होइ पुहुत्त वितक्कं सविचार-मरागभावस्स ॥७८।। ____ अर्थः-एक (अणु आत्मा आदि) द्रध्य में उत्पाद-स्थिति-नाश आदि पर्यायों का अनेक नयों से 'पूर्वगत' भूत के अनुसार जो चितन, , वह भी पदार्थ, द्रव्य, शब्द (नाम) और योग (मनोयोग आदि) के भेद से 'सविचार' अर्थात् इन तीनों में एक पर से दूसरे पर संक्रमण वाला चिन्तन पहला शूक्ल ध्यान है। वह भी विविधता से धृतानुसारी होने से सविचार है और वह रागभाव रहित वाले को होता हैं। शुक्ल ध्यान : (१) पृथकत्व वितर्क सविचार शुक्ल ध्यान का 'कम' द्वार पूरा हुआ। अब 'ध्यातव्य' द्वार का विचार करते हुए कहते हैं:विवेचन : __ 'ध्यातव्य' याने ध्येय अर्थात् ध्यान का विषय । शुक्ल ध्यान के चार प्रकार में पहले प्रकार का ध्येय विषय याने ध्यातव्य विषय एक द्रव्य के पर्याय हैं। यहां धर्मध्यान से शुक्ल ध्यान का विषय सूक्ष्म है अर्थात् 'एक द्रव्य' के रूप में किसी अणु द्रव्य के या आत्मादि द्रव्य के पर्याय पहले शुक्ल ध्यान के विषय बनते हैं। वे पर्याय हैं उत्पत्ति, स्थिति, नाश या मूर्तत्व अमूर्तत्व आदि। एक ही द्रव्य के पर्यायों का यह ध्यान द्रव्यास्तिक, पर्यायास्तिक या निश्चय व्यवहारादि नय के अनुसार होता है। उदा० द्रव्यास्तिक नय से वह
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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