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________________ ( २६७ ) प्रश्न - बीच के प्रदेश को स्पर्श किये बिना कैसे जा सकता है ? और स्पर्श करे तो बीच में समय भी लगे ही न ? उत्तर - नहीं, नहीं लगता। क्योंकि जीव संसार-काल में सूक्ष्म एकेन्द्रिय अवस्था में भी ऊपर जाता था, पर वह तो कर्म - प्रेरणा से जाता था, तब भी बीच के आकाश प्रदेशों की स्पर्शना नहीं थी तो अब तो सर्वं कर्म बन्धन टूट जाने से हलका फूल सा बना हुआ सिद्ध जीव यहाँ से छूटते ही बाद के समय ऊपर पहुंच जाता है उसमें क्या आश्चर्य ? साकारोपयोग से सिद्धि प्रश्न – अब अकेला शुद्ध जीव ही है, कर्म बन्धन नहीं है, तो लोकान्तर पर जा कर क्यों रुकता है ? उससे भी ऊपर क्यों नहीं जायं ? उत्तर— उसका कारण यही है कि लोकान्त से ऊपर गतिसहायक धर्मास्तिकाय तत्त्व नहीं है । यह तत्त्व तो केवल चौदह राजलोक-व्यापी अर्थात् लोकाकाश व्यापी ही है, अलोक-व्यापी नहीं है । तो गतिसहायक धर्मास्तिकाय के बिना अलोक में किस तरह से गमन कर सके ? सर्व कर्म क्षय होते ही मोक्ष प्राप्ति होती है उस समय केवलज्ञान केवल दर्शन इन दानों में से केवलज्ञान का ही अर्थात् साकार ही उपयोग होता है। यह नियम हैं कि सभी लब्धियें साकारोपयोग याने ज्ञानोपयोग में ही प्राप्त होती हैं, निराकार याने दर्शन उपयाग में नहीं। अलबत्ता मोक्ष होने के दूसरे ही समय केवलदर्शन का उपयोग आ जाता है; तो उसके बाद के समय पुनः केवलज्ञान का उपयोग आता है । इस तरह अब शाश्वत रूप से हमेशा अनन्त काल तक समय समय पर ज्ञानोपयोग तथा दर्शनोपयोग दोनों एक के बाद एक होते रहते हैं । यह क्रम हमेशा चलता रहेगा ।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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