SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । २६९ ) उत्पाद आदि पर्याय का द्रव्य से अभिन्न रूप से चिन्तन करता है। यह 'चिन्तन' चौदह 'पूर्व' नामक महाशास्त्र के अन्तर्गत आये हुए श्रुत के अनुसार होता है। इन पूर्वो में पदार्थ का बहुत विस्तृत और सक्ष्म कोटि का विचार किया गया है। इससे उसके आधार पर इस शुक्ल ध्यान के पहले प्रकार में द्रव्य पर्याय का सूक्ष्म चिंतन किया जाता है। यह 'पूर्व' शास्त्र के ज्ञाता ही कर सकते हैं । प्रश्न- तो फिर, मरुदेवी माता, भरत चक्रवर्ती आदि तो ये शास्त्र पढ़े हए नहीं थे। उन्हें किस तरह शुक्ल ध्यान हआ ? शुक्ल ध्यान के बिना समस्त घाती कर्मों का क्षय और केवलज्ञान तो नहीं हो सकता। उत्तर-बात सत्य है । मरुदेवी माता आदि को जो केवलज्ञान प्राप्त हुआ, वह शुक्ल ध्यान से ही, पर उन्हें वह दूसरे प्रकार से आया था। ( (१) धर्म ध्यान की उत्कृष्टता के बल पर, और (२) भाव से ऊपर ऊपर के गुणस्थानक पर चढ जाने के प्रभाव वश । उन्हें ज्ञानावरणीय कर्म का तीव्र क्षयोपशम होने से 'पूर्व' शास्त्र में कहे हुए पदार्थ का बोध प्रकट हो गया । अत: यद्यपि वे 'पूर्व' शास्त्र के वेत्ता शब्द से वेत्ता नहीं थे, किन्तु अर्थ स वेता बन कर फिर उसके आधार पर शुक्लध्यान पर चढ गये।) सविचार याने ? यह पहले प्रकार का शुक्लध्यान सविचार होता है अर्थात् उसमें चिन्तन अर्थ, व्यंजन-योग में से किसी एक पर से दूसरे पर 'विचार' याने विचरण वाला संक्रमण वाला होता है । 'अर्थ' याने वस्तु । 'व्यंजन' याने उसका बोधक शब्द । उदा० उत्पत्ति वस्तु का बोधक शब्द 'उत्पाद', 'उत्पत्ति', निष्पत्ति आदि । योग याने मनो. योग, वचनयोग, काययोग। इन तीनों में विचरण-संक्रमण होता
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy