SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८६ ) पहली ज्ञान भावना में पांच कार्य करने के हैं:१. श्रुत ज्ञान में नित्य प्रवृत्ति। २. मन को अशुभ भाव से रोकना। ३. सूत्र अर्थ की विशुद्धि। ४. भवनिर्वेद तथा .. ५. परमार्थ की समझ। १. ज्ञान का नित्य अभ्यास:-श्रुतज्ञान अर्थात् सर्वज्ञ के शास्त्रों के ज्ञान में हमेशा लगा रहे। इसमें भी इन शास्त्रों का पांच प्रकार से स्वाध्याय करता रहे : (१) शास्त्र पढ़ने के लिए गुरु से उसकी वाचना ले, सूत्र अर्थ के व्याख्यान ले। पढ़कर उसमें चतुर बनकर फिर दूसरे को वाचना दे, अन्यथा मन खाली होते ही उसमें गलत विचारों के भूत घुस जावेंगे। (२) स्वयं वाचना लेने के बाद उसमें शंका पड़ने पर गुरु को पूछे; अन्यथा शंका से समकित जाय' जैसा हो जाय। (३) पढ़े हुए सूत्र अर्थ का परावर्तन पुनरावर्तन करता रहे। अन्यथा भुला देने पर उसका पारायण-स्वाध्याय नहीं हो सकेगा। (४) अनुप्रेक्षा याने सूत्र अर्थ का चिंतन मनन करे। इससे उसमें से विशेष रहस्य खुले, श्रद्धा दृढ़ हो, तात्त्विक तर्क सिद्ध श्रद्धा हो, जिससे सामने से आकर्षक तथा चाहे जैसी विपरीत बात आवे, तब भी मन नहीं डिगे। (५) धर्मकथा याने पढ़े हुए श्रुत पर धर्मविचारणा व धर्मोपदेश करे। इस तरह श्रुतज्ञान में नित्य प्रवृत्तिचालू रखे। २. मनोधारणः-उपरोक्त नित्य ज्ञानाभ्यास तो करे, पर मन को बीच बीच में अशुभ या मुफ्त के विचारों या मलिन वृत्तियों में जाने दे तो मन इस श्रुतज्ञान से भावित नहीं होगा। अतः उन अशुभ व्यापारों में से मन को बचाले, धारण करे। श्रुत यास्त्र पर अब हद प्रीति बहमान धारण करने से यह सम्भव होगा।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy