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________________ तपः कुलकम् [ ७१ ते धना धन्नमुणी, दुन्नवि पंचुत्तरे पत्ता ॥ १४॥ श्रेणिक राजा के सम्मुख श्री वीर परमात्मा ने जिनका तप स्वरूप वर्णन किया था वे धन्नो मुनि (शालिभद्र के बहनोई ) और धन्ना काकंदी दोनों मुनि ने अपने तप के प्रभाव से सर्वार्थसिद्ध विमान में गमन किया ॥१४॥ सुणिऊण तव सुंदरी कुमरीए अंबिलाण अणवरयं । सर्टि वाससहस्सा, भण कस्स न कंपए हिश्रयं ॥ १५ ॥ __ श्री ऋषभदेव स्वामी की पुत्री सुन्दरी ने ६० हजार वर्ष पर्यन्त सतत आयंबिल करके जो आदर्श उपस्थित किया है यह जानकर किसका हृदय कंपित नहीं होगा १ ॥१६॥ जं विहिअमंबिल तवं __ बारस वरिसाइं सिवकुमारेग। तंदठठु जंबुरूवं, विम्हइश्रो(सेणियो)कोणियो राया॥१६॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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