SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् [ ३५ निव्वश्रयाई न गिरहे, निविय तिगमज्झि विगइ दिवसे थ। विगई नो गिरहेयि अ, दुन्नि दिणे कारणं मुत्तुं ॥२६॥ तीन निविओं लागोलाग होवे तब तक तथा विगई ग्रहण के दिन भी पक्वान्नादि नहीं ग्रहण करूँ । तथा पुष्ट कारण के बिना दो दिन तक प्रयोग न करूं ॥ २६ ॥ अट्टमी चउद्दसीसु, करे अहं निव्वीयाई तिन्ने व । अंबिल दुगं च कुब्वे, उववासं वा जहा सत्तिं ॥३०॥ प्रति अष्टमी चतुर्दशी उपवास करू, शक्याभावे दो आयंबिल या तीन निविओं आदि करूँ ॥ ३० ॥ दव्वखित्ताइगया, दिणे दिणे अभिग्गहा गहे अब्बा। जीयम्मि जो भणियं, पच्छित्तमभिग्गाभावे ॥३१॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy