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________________ ३४ ] अथ संविग्न साघुयोग्यं नियम कुलकम् का संग्रह भी उपाश्रय में न तो रखू नथा न इसकी आज्ञा ही दूं ॥ २६ ॥ तपाचार के विषय मेंतवायारे गिराह, अह नियम 4.इवर ससत्तीए । श्रोगाहियं न कप्पइ, छट्टाइतवं विणा जोगं । ॥२७॥ कितने ही नियम यथाशक्ति ग्रहण करूं, उसमें एकसाथ दो उपवास न किये हो या अधिक तप न किया हो, या योगवहन न किया गया हो तो मुझे अवगाहिम (पकवानविगइ) मिना लेना कल्पित नहीं है ॥ २७ ॥ निबिय तिगं च अंबिल दुगं च विणु नो करेमि विगयमहं । विगइदिणे खंडाइ, गकार नियमो अ जावजीवं ॥२८॥ लगातर तीन निविओं के बिना या दो आयंबिल के बिना दूध, दही, घी आदि लू नहीं। तथा विगइ वापरने के समय धादि स्वाद हेतु शर्करा का प्रयोग न करूं । तथा इस नियम को जीवन भर पानू ॥ २८ ॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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