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________________ वराग्य कुलकम् [ १८५ व वैराग्य कुलकम् ॥ हिन्दी सरलार्थ युक्तम् । अर्थकर्ता-प्राचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरिः जम्म--जरा-मरणजले, नाणाविहवाहिजलयराइन्ने। भवसायरे असारे, दुल्लहो खलु माणुसो जम्मो॥१॥ अर्थ-जन्म जरा (वृद्धावस्था) और मरणरुप जलवाले तथा विविध प्रकार के व्याधिरूप जलचर जीवों से भरे हुए इस असार संसार रुप सागर में मनुष्य-मानव जन्म की प्राप्ति अवश्य दुर्लभ है ॥१॥ तम्मि वि पायरियखित्तं, जाइ--कुल-रुव--संपयाउय । चिंतामणिसारित्थो, दुल्लहो धम्मो य जिणभणियो॥२॥ अर्थ-उसमें ( मनुष्य जन्म में) भी आर्यक्षेत्र, उत्तम जाति, उत्तम कुल, उत्तम रुप और सम्पदा प्राप्त होने पर भी चिन्ता मणिरत्न समान जिनभाषित धर्म (जैन धर्म) मिलना दुर्लभ है ॥ २॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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