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सामणा कुलकम्
अक्कमिउणं आणा, कारविया जे उ माण भंगेणं । तामसभादगएणं, ते वि य तिविहेण खामेमि ॥१८॥ __ मेरे अभिमान के कारण मान भंग हुए मेरे मन से तामसवृत्ति के कारण यदि जीवों को संताप संत्रास दिया गया हो तो उन सबसे मैं त्रिविध प्रकार से क्षमा चाहता हूं ॥१८॥ अब्भक्खाणं जे मे, दिन्नं दुह्रण कस्सइ नरस्स। रोसेण व लोभेण व तं पि य तिविहेण खामेमि ॥११
दुष्टता या क्रोध से मैंने या लोभ से मैंने किसी मनुष्य पर झूठे कलंक चढाए हो तो त्रिविध प्रकार से क्षमा चाहता हूं ॥१९॥ परावयाए हरिसो, पेसुन्नं जं कयं मए इहई । मच्छर भावठिएण, तं पि यतिविहेण खामेमि ॥२०॥
मात्सर्य भाव से इस संसार में मैने दूसरे की संपत्ति में शोक और विपत्ति में हर्ष किया हो तो उन सबके लिये त्रिविध प्रकार से क्षमा चाहता हूं ।। २० ।।