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कर्म कुलकम्
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पवित्र शील वाली सती द्रौपदी को पांच पाण्डवों की पत्नी होना पड़ा, यह कर्म बिना क्यों होवे ? ॥ १४ ।। मियापुत्ताइजीवाणं, कुलीणाण वि तारिसं । महादुःखं कहं हुतं ? न हुतं जइ कम्मयं ॥१५॥
कुलीन मृगापुत्रादि जीवों को कई प्रकार का तीव दुःख प्राप्त हुआ वह उसी प्रकार के कर्मों का ही तो विपाक है। .. वसुदेवाईणं हिंडी, रायवंसोभवाण वि। तारुराणे वि कहं हुंता ?, न हुतं जइ कम्मयं ॥१६॥
यदि कर्मों का चक्कर नहीं होता तो राज्यकुल में जन्म धारण करने वाले तथा सुखभोग करने वाले वसुदेवादि को यौवन अवस्था में क्यों भटकना पडता ? ॥ १६ ॥ वासुदेवस्स पुत्तो वि, नेमिसीसो वि ढंढणो । अलाभिल्लो कहं हुतो?, न हुतं जइ कम्मयं ॥१७॥
वासुदेव के पुत्र तथा श्री नेमिनाथ प्रभु के शिष्य होते हुए भी ढंढण ऋषि को छः मास तक आहार नहीं मिला वह सब कर्म का ही फल तो है ॥ १६ ॥