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________________ १४० ] कर्म कुलकम् अंधत्तं बंभदत्तम्स, सुदेहस्सावि दुस्सहं । चक्किसावि कह हुतं?, न हुति जइ कम्मयं ॥११॥ सुन्दर शरीर वाले ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति को भी दुःसह अन्धत्व प्राप्त हुआ यह कर्म विना अन्य क्या कारण हो सके ? ॥११॥ नीयगुत्ते जिणिदो वि, भूरिपुराणो वि भारहे। उपज्जंतो कहं वीरो ? न हुतं जइ कम्मयं ॥१२॥ ___ इस भरतक्षेत्र में महापुण्यशाली जिनेन्द्र श्रीमहावीर प्रभु भी नीच गोत्र में उत्पन्न हुए यह कर्म बिना क्या कारण हो सके ? ।। १२॥ अवंति सुकुमालो वि, उज्जेणीए महायसो । कह सिवाइ खज्जंतो ? न हुतं जइ कम्मयं ॥१३॥ उञ्जयिनी नगरी में महान् यशवान अवन्ती सुकुमार (मुनि) को सियारनी द्वारा भक्षण किया जाना, कर्म के सिवाय और क्या हो सकता है ।। १३ ॥ सईए सुद्धसीलाए, भत्तारा पंच पंडवा। दीवईए कहं हुंता, न हुंति जइ कम्मयं ॥१४॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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