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________________ १३८ ] कर्म कुलकम् दारूणायो सलागायो, कन्नेसु वीर सामिणो । पक्खिवंतो कहं गोवो ? न हुतं जइ कम्मयं ॥४॥ जो कर्म नहीं होता तो महावीर प्रभु के कानों में गोवाल के द्वारा भयंकर कीले क्यों ठोके जाते ? ॥ ४ ॥ वीसं वीरस्स उवसग्गा, जिणिंदस्सावि दारुणा । संगमायो कहं हुता, ? न हुतं जइ कम्मयं ॥५॥ ___ जो कर्म नहीं होता तो तीर्थङ्कर महावीर भगवान को भी संगमदेव से बीस उपसर्ग क्यों होते ? ॥ ५ ॥ गयसुकुमालस्स सीसंमि, खाइरंगार संचयं । पक्खिवंतो कहं भट्टो ? न हुतं जइ कम्मयं ॥६॥ जो कर्म न होता तो गजसुकुमाल के मस्तक पर खेर के जलते अंगारे सोमिल विप्र क्यों रखता । पूर्वजन्म का कम दोष ही था तभी सोमिल से पुनः कष्ट प्राप्त हुआ ॥६॥ सीसाउ खंदगस्सावि ?, पीलिज्जंता तया कहं । जं तेण पालएणवि, न हुतं जइ कम्मयं ॥७॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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