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________________ कर्म कुलकम् [ १३७ ॥ अथ कर्म कुलकम् ॥ ते लुक्किक्कस्स मल्लस्स, महावीरस्स दारणा। उवसग्गा कहं हुता ?, न हुतं, जइ कम्मयं ॥१॥ तीनों लोक में अद्वितीयमल्ल के समान श्री महावीर प्रभु को भी उपसर्गो भयंकर हुए इसलिये कर्म न होता तो यह सब क्यों होता १ ॥१॥ वीरस्स मेढियग्गामे, केवलिस्सावि दारूणो। अइसारो कहं हुतो ?, न हुतं जइ कम्मयं ॥२॥ जो कर्म न होता तो श्री महावीरस्वामी केवलज्ञानी थे उनको मेढिक गांव में भयंकर अतिसार क्यों हआ ? ॥२॥ वीरस्स अट्टिअग्गामे, जक्खायो सूल पाणिणो । वेत्रणाश्रो कह हुती ?. न हुतं जइ कम्मयं ॥३॥ यदि कर्म का अस्तित्व न होता तो समर्थ वीर भगवान को अस्थिक ग्राम में शूलपाणी यक्ष से वेदनाएँ क्यों होती?॥३॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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