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भय कुलकम्
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अभव्यजीव (२८) अनुभव युका भक्ति (२६) जिनाज्ञा नुसार साधर्मिवात्सल्य, (३०) संसार से वैराग्य और (३१) शुक्ल पाक्षिकपन ये प्राप्त नहीं कर सकते ।।७।। जिणजणयजणणि जाया,
जिणजक्खाजक्खिणी जुगपहाणा । थायरियपयाइदसगं,
परमत्थ गुणदृढमप्पत्तं ॥८॥ (३२) जिनेश्वर की माता उनके पिता, स्त्री, यक्ष, यक्षणी और (३३) युगप्रधान भी नहीं हुए हैं पुनः (३४) विनय योग्य आचार्यादि दश स्थानों तथा परमार्थ से अधिक गुणवन्तपणा उन्हें भी प्राप्त नहीं होता है ।। ८ ।। अणुबंधहेउसरुवा,
तत्थ अहिंसा तिहा जिणुदिट्ठा। दव्वेण य भावेण य,
दुहा वि तेसि न संपत्ता ॥१॥ पुनः (३५) अनुबन्ध हेतु और स्वरूप इस प्रकार तीन प्रकार से श्री जिनेश्वर द्वारा कही हुई अहिंसा भी द्रव्य या भाव से उन्हें कभी प्राप्त नहीं होती है ॥ ६ ॥ ॥ इति श्री अभव्य कुलकस्य हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ॥