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भाव कुलकम्
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उप्पन्नकेवलाणं,
सुहभावाणं नमो ताणं ॥१२॥ जीवस्स सरीरायो,
भेयं नाउं समाहिपत्ताणं। . उप्पाडि नाणाणं, __खंदकसीसाणं तेसिं नमो ॥१३॥
गौतमस्वामी ने जो पन्द्रह सौ तापसों को दीक्षा दी तथा उन्हें शुभ भाव से केवलज्ञान हुआ था उन्हें नमस्कार हो । पापी पालक द्वारा यन्त्र में पीसे जाते हुए भी जीव को शरीर से भिन्न मान कर समाधिस्थ होने पर जिन्हें केवलज्ञान हुआ था उन 'स्कंदकसूरि के समस्त शिष्यों को नमस्कार हो ।। १२-१३ ॥ सिरि वद्धमाणपाए,
पूयंती सिंदुवार कुसुमेहिं। भावेणं सुरलोए,
दुग्गयनारी सुहं पत्ता ॥ १४ ॥ श्री वर्धमान स्वामी के चरणों को सिन्दुवार के फूलों से पूजा करने की इच्छा करने वाली 'दुर्गता नारी' शुभ ध्यान के कारण सुख को प्राप्त हुई ।। १४ ॥