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________________ ७] भाव कुलकम हत्थिं मि समारूढा, रिद्धि दट्ठण उसभसामिस्स । तक्खण सुह झाणेणं, मरुदेवी सामिणी सिद्धा ॥१०॥ हस्ति के स्कंध पर आरूढ होते हुए भी मरुदेवी माता ऋषभदेव स्वामी की तीर्थङ्कर अवस्था की ऋद्धि-सिद्धि देख कर तत्काल शुभ ध्यान से अंतकृत् केवली होकर मोक्ष को प्राप्त हुई थी ।। १० ॥ पडिजागरमणीए, जंधाबलखीण मनियापुत्तं । संपत्त केवलाए, नमो नमो पुप्फचूलाए ॥११॥ क्षीण जंघावलवाले ऐसे अर्णिकापुत्र आचार्य की शुभ भाव से सेवा करते जिसे केवलज्ञान प्राप्त हुआ वे साची पुष्पचूला को पुनः पुनः नमस्कार हो । ११ ।। पन्नरसयतावसाणं, गोयमनामेण दिनदिक्खाणं ।
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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