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________________ (89) ॥३॥ लदाणि षट् योजनानां । हात्रिंशच सहस्रकाः ॥ पंचपंचाशदाब्यानि । चत्वार्येव शतानि च ॥ ४० ॥ पूर्वपूर्वपंक्तिगत–परिधिष्वस्य योजनात् ॥ अय्याश्यपंक्ति परिधिः । सर्वत्र क्षेप एष वै ॥४१॥ अथैतस्यादिमपंक्ति -परिधौ क्षेपतः किल ॥ द्वितीयपंक्तिसंबंधी। परिधिः स नवेदियान ॥ ४२ ॥ एकपंचाशता लदै-रेका कोटी समन्विता ॥ अष्टसप्तत्या सहस्र-त्रिशैवभिः शतैः ॥ ४३ ।। षडेव लदाः पूर्वस्मात्परिधेरधिकास्ततः॥ षणां वृधिः प्रतिलदा-मे कैकादुवृद्धितः ॥ ४ ॥ एवं रावो नीचेमुजब थाय . ॥ ३५ ॥ बलाख बत्रीस हजार चारसो पचावन जोजन थाय .॥ ४० ॥ तेने पूर्वपू. वनी पंक्तिना घेरावामां नेळववाथी पागलीयागली पं. क्तिनो घेरावो आवे , एवीरीते सर्वमां तेज नेळववानुं वे.॥४१॥ हवे पहेली पंक्तिना घेरावामां ते नेळववाथी बीजी पंक्तिसंबंधी नीचेमुजब वेरावो आवे. ॥ ४ ॥ एक क्रोम एकावन लाख अठोतेर हजार नवसोने बत्रीस जोजन थाय . ॥ ४३ ॥ श्रने एवीरीते पूर्वना घे. रावाथी साख जोजनज अधिक थया, अने दर लाख जोजने एकेक सूर्यचंनी वृधियी उनी वृधि श्रश्. ॥
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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