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________________ (४५०) पंक्तौ हितीयस्यां । संमिता लदसंख्यया ॥ प्रत्येकमेकचाशं । शतमिदुदिवाकराः ॥ ४५ ॥ द्वितीयपंक्तिपरिधौ । ततः क्षेपांकयोगतः ॥ तृतीयपंक्तिपरिधि-रेतावानिह जायते ॥ ४६॥ एका कोट्यष्टपंचाश-लदाण्येकादशापि च ॥ सहस्राणि तिशती च । सप्ताशीतिसमन्विताः॥ ॥ ४ ॥ पूर्वस्मात्परिधः सप्त । लदा जाता हाधिकाः॥ वृधिस्ततस्तृतीयस्यां । सप्तानामिदुनाग्वतां ॥ ४ ॥ तु. यपिंचम्योस्तु पंक्त्योः । षाणां षणां ततः परं ॥ वृधिः प. ॥४४॥ एवीरीते बीजी पंक्तिमां तेटला लाखोनी संख्या जेटला एटले एकसो पचास एकसो पचास सूर्यचंडोथया. ॥ ४५ ॥ पनी बीजी पंक्तिना घेरावामां नेळववानी संख्याना योगथी त्रीजी पंक्तिनो घेरावो नीचेमुजर थाय . ॥ ४६॥ एक क्रोम यावन लाख अग्यार ह. जार त्रणसोने सतासी जोजन थाय . ॥ ४ ॥ एवी. रीते वहीं पूर्वना घेरावाथी सात लाख जोजन अधिक थया, तेथी त्रीजी पंक्तिमां सात सात चंद्रसूर्योनी वृद्धि थइ. ॥ ४ ॥ पनीनी चोथी थने पांचमी पंक्तिमां न छनी वृद्धि थाय , थने ते पनीनी बठी पंक्तिमां सातनी वृद्धि थाय ने, अने तेपनीनी बे पंक्ति मां पानी ब
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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