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________________ (४०) यावलदप्रमाणो यो । दीपो वापि तथांबुधिः ॥ स्यु. स्तावत्यः परिरय-श्रेण्यस्तन्नास्वतां ॥ ३५ ॥ वृधिः पंक्तौ हितीयस्या-माद्यपंक्तरनंतरं ॥ षष्मां प्रत्येकमा णा-मिंदनां च निरूपिता ॥ ३६ ॥ तृतीयस्यां तु सप्तानां। वृधिः षणां ततो द्वयोः ॥ पुनः पंक्तौ तृतीयस्यां । . सप्तानां वृधिरेव हि ॥ ३७ ॥ तथाहि-पंत्योदयोर्योज. नानां । लदमंतरमेकतः ॥ परतोऽप्यंतरं ताव-त्ततोल. हृदयाधिके ॥ ३० ॥ विष्कंने पूर्व विष्कंजा-अतिपंक्ति विवर्धते ॥ लदादयं योजनानां । तस्यायं परिधिनवेत ॥ जेटला लाख जोजनना प्रमाणवाळो जे दीप अथवा समुद्र होय, तेटली त्यां सूर्यचंद्रोनी घेरावानी श्रेणिन होय . ॥ ३५ ॥ पहेली पंक्तिपली बीजी पंक्तिमां सूर्यचंद्रोनी दरेकनी छनी वृधि कहेली . ॥ ३६ ॥ बने त्रीजीमां सातनी वृद्धि थाय ने, पीनी बेमां बनी, अने पानी नीजी पंक्तिमा सातनी वृद्धि थाय ने. ॥ ३७ ॥ ते कहे जे-बने पंक्तिनुं एक बाजुथी एक लाख जोज. ननुं अंतर , अने बीजी बाजुथी पण तेटझुंज अंतरठे, अने तेथी बे लाखथी अधिक ॥ ३० ॥ पहोनश होते बते दरपंक्तिए बे लाख जोजन वधे , अने तेनो के.
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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