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________________ ( १७ ) चैरखताख्य – मैरावतसुराश्रितं ॥ स्यात्तिविहृदेशायास्तिगिरिकूटमंतिमं ॥ ७५ ॥ इदं जंबूद्दीपप्रज्ञप्तिसूत्राभि प्रायेण, क्षेत्रसमासे त्वव पंचमं श्रीदेवीकूटं नवमं गंधापाती कूटमिति दृश्यते. याद्ये चैत्यं शेषकूट – दशके च सुधानुजां ॥ तत्तत्कूटसमाख्यातां । स्युः प्रासादावतंसकाः || १६ || पुंमरीकहृदश्चात्र । पद्महृदसहोदरः || अस्मिंश्च मूल कमल - मेक योजन संमितं ॥ 99 ॥ तदर्धार्धप्रमाणानि । शेषाज्जवलयानि षट् ॥ लक्ष्मीदेवी वसत्यव । स्थि. त्या श्रीदेवतेव सा || 9 || हिमवद्विवित्स वै । मानमऐरावत नामनुं वे, पने बेल्लुं तिगिंहिदनी मालिक देवतानुं तिगिंबिकूट नामनुं वे ॥ ७५ ॥ या अभिप्राय जंबूदीपपन्नतिसूत्रनो बे, परंतु क्षेत्रसमासमां तो पांच श्रीदेवीकूट तथा नवमं गंधापातीकूट देखाय बे. पहेला शिखरपर जिनमंदिर के पने बाकीनां दश शिखरोपर ते ते शिखरसरखा नामवाळा देवोना महेवी वे. ||१६|| ह्या पर्वतपर पद्महृदसरखोपुंडरीकहृद वे, खने तेमां मू लकमल एक जोजन जेवरुं वे ॥ 99 ॥ खने तेथी प प्रमाणना बीजां व वलयो वे, ने तेमां श्रीदेव ताजेवीज लक्ष्मीदेवी बसे वे ॥ 9 ॥ या पर्वतनुं जी "
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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