________________ श्रीरायचन्द्रजैनशास्त्रमाला निवेदन-स्वर्गवासी तत्त्वज्ञानी शतावधानी कविवर उद्देश है / ग्रंथ छपाकर कमाई करनेक रायचन्द जीके स्मारकमें यह ग्रंथमाला उनके स्थापित शा०मा० का नहीं है। हमारा यह उद्देव किये हुए परमश्रुतप्रभावकमंडल के तत्वावधान हो सकता है, जब पाठक अधिकसे अधि 50 वर्षसे निकल रही है, इसमें श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य, अथवा शास्त्रमालाके ग्रंथ खरीदकर जैन श्रीउमास्वामी, श्रीसिद्धसेन दिवाकर, श्रीअमृतचन्द्रसूरि, श्रीशुभचन्द्राचार्य, श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्र- काममें हमारी मदद करें, क्योंकि तत्त्वज्ञ वर्ती, श्रीयोगीन्दुदेव, श्रीविमलदास, श्रीहेमचन्द्रसूरि,बढ़कर दूसरा कोई प्रभावनाका पुण्यकार्य नहीं है। श्रीमल्लिषेण सूर आदि आचार्यों के अतिशय उपयोगी श्रीकुन्दकुन्दस्वामीके सभी ग्रंथ और स्वामिकार्तिकेयाग्रंथ सुसम्पादित होकर मूल, संस्कृत टीकाएँ और सरल नुप्रेक्षा, तत्त्वार्थसार, आसमीमांसा आदि कई ग्रन्थोंका हिन्दीटीका सहित निकाले गए हैं। सर्वसाधारणमें सुलभ सुसम्पादन हो रहा है और कई छप रहे हैं, जो समयानुसार। मूल्यमें तत्त्वज्ञानपूर्ण ग्रन्थोंका प्रचार करना इसका मुख्य निकलेंगे। सभी ग्रंथ सुन्दर मजबूत जिल्दोंसे मंडित हैं। प्रकाशित ग्रन्थोंकी सूची. 1 पुरुषार्थसिद्धधुपाय-मूल और हिन्दीटीका 15 पुष्पमाला मोक्षमाला और भावनाबोध श्रावक-धर्मका विस्तृत वर्णन है / 2) पो०) श्रीमद्राजचन्द्रकृत, 108 सुन्दर शिक्षाप्रद पाठ 2 पंचास्तिकाय-अप्राप्य है। हैं। शा) पो०) 3 ज्ञानार्णव-श्रीशुभचन्द्राचार्यकृत मूल और 16 उपदेशछाया और आत्मसिद्धिस्व०पं० पन्नालालजी बाकलीवालकृत हिन्दी श्रीमद्राजचन्द्रकृत, अप्राप्य टीका, योग-ग्रंथ 6) पो०॥) 17 योगसार-अप्राप्य 4 सप्तभंगीतरंगिणी-मूल और हिन्दीटीका 18 YOGINDU, HIS PARAMATMAPRA अप्राप्य KASA AND OTHER WORKS 5 बृहद्व्य संग्रह-अप्राप्य 19 श्रीमदराजचन्द्र-श्रीमदराजचन्द्रजीके पत्रों 6 गोम्मटसार कर्मकांड-श्रीनेमिचन्द्रकृत मूल और रचनाओंका अपूर्व संग्रह, अध्यात्मका अपूर्व गाथायें ओर स्व. पं० मनोहरलालजीकृत और विशाल ग्रंथ है। म. गांधीजीकी प्रस्ताहिन्दीटीका, सिद्धान्त-ग्रंथ / 3) पो०) वना है / पृष्ठसंख्या 950 स्वदेशी कागजपर कलापूर्ण सुन्दर छपाई हुई है। मूल्य सिर्फ १०)पो०१) 7 गोम्मटसार जीवकांड-श्रीनेभिचन्द्रकृत 20 न्यायावतार-श्रीसिद्ध सेन दिवाकरकृत मूल मूल गाथायें और पं० खूबचन्द्रजीकृत भा०टी०३)1) श्लोक, और पं० विजयमूर्ति एप० ए०, जैन८लब्धिसार-हिन्दीटीका सहित, अप्राप्य दर्शनाचार्यकृत भा० टी०, न्यायका प्राचीन 9 प्रवचनसार-अप्राप्य है, पुनः छपेगा। ग्रंथ, पृष्ठसंख्या इसी आकारके 144 / नया 10 परमात्मप्रकाश और योगसार-मूल छपा है। 5) पो०) अपभ्रंश दोहे, संस्कृतटीका, हिन्दीटीका, 21 प्रशमरतिप्रकरण-श्रीउमास्वातिकृत मूल श्लोक, अंग्रेजी प्रस्तावना और उसके हिन्दीसार सहित, श्रीहरिभद्रसूरिकृत सं० टी०, साहित्याचार्य पं० अध्यात्म विषयका सुन्दर ग्रंथ।६) पो० // -) राजकुमारजी शास्त्रीकृत सरल विस्तृत हिन्दीटीका 11 समयसार-श्रीकुन्दकुन्द स्वामीकृत, अप्राप्य सहित, वैराग्यका सुन्दर ग्रंथ है। ६)पो017) है / पुनः सम्पादन संशोधन हो रहा है, गुजराती ग्रंथ जल्दी छपेगा १श्रीमद्राजचन्द्र-अप्राप्य है। 12 द्रव्यानुयोगतर्कणा-अप्राप्य है 2 भावनाबोध--अप्राप्य है। 13 स्याद्वादमंजरी-श्रीमल्लिषेणसूरिकृत मूल सं० नोट-ग्रंथ वी०पी० से न भेजे जायेंगे। ग्रंथोंका टी०, डॉ०५० जगदीशचन्द्र एम०ए०कृत हिन्द- मूल्य पो० के दाम और रजिष्टीके चार आने पेशगी टीका सहित, न्यायका महत्त्वपूर्ण ग्रंथ।६) पो० // -) आनेपर बुकपोष्ट रजिष्ट्रीसे भेजे जायेंगे। 14 सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र मोक्षशास्त्र- मिलने का पता:-परमश्रुतप्रभावक मंडल श्रीउमास्वातिकृत मूलसूत्र संस्कृतटीका, पं० खूब (रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला ) चन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीकृत हिन्दीटीका 3) पो० ॥)चौकसीचेम्बर ठि० खाराकुवा, जौहरीबाजार बम्बई नं. 2