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कारिका २११-२१२-२१३] प्रशमरतिप्रकरणम् ग्रैवेयकाणि त्रीणि', अधोमध्यमोपरितनभेदेन । पञ्च महाविमानानि चतुर्दशो भेदः । ईषत्प्रा. ग्भाराख्यः पञ्चदशो भेद इति ॥ २१२ ॥
____ अर्थ-अधोलोकके सात भेद हैं, तिर्यग्लोकके अनेक भेद हैं और ऊलोकके संक्षेपसे पन्द्रह भेद हैं।
भावार्थ-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तम:प्रभा और महातमःप्रभा पृथिवीके भेदसे अधोलोकके सात विभाग हैं । तिर्यग्लोकमें जम्बूद्वीप और लवणसमुद्रको आदि लेकर असंख्पात द्वीप और समुद्र हैं । अतः तिर्यग्लोकके भी अनेक विभाग हैं। तथा ज्योतिष्क जातिके देव भी तिर्यग्लोकमें ही निवास करते हैं । ऊर्ध्वलोकके पन्द्रह भेद हैं । सौधर्म वगैरह बारह स्वर्गोंमेंसे आनत और प्राणत तथा आरण और अच्युत स्वर्गों में एक एक इन्द्र होनेके कारण दस भेद होते हैं । स्वर्गौसे ऊपर नौ ग्रैवेयक हैं । उनके तीन भेद हैं-अध ग्रैवेयक, मध्यम अवेयक और उपरितन अवेयक । पाँच अनुत्तर विमानोंका एक भेद है और ईषत्प्राग्भार, जिसे सिद्धशिला भी कहते हैं, नामका एक भेद है। इस प्रकार ऊर्ध्वलोकके १०+३+१+१=१५ भेद होते हैं।
अथाकाशं किं लोकमात्रमेवाहोस्वित् सर्वत्रेत्याहअब क्या आकाश लोकप्रमाण ही है या सर्वत्र व्याप्त है ? यह बतलाते हैं
लोकालोकव्यापकमाकाशं मर्त्यलोकिकः कालः ।
लोकव्यापि चतुष्टयमवशेषं त्वेकजीवो वा ॥ २१३ ॥
टीका-व्यापकमिति लोकालोकस्वरूपमुच्यते लोकस्वरूपमलोकस्वरूपं च । जीवाजीवाधारक्षेत्रं लोकस्ततः परमलोक इति । यत्राकाशे जीवाजीवादिपदार्थपञ्चकं तल्लोकाकाशम्, यंत्राभावो जीवादीनां तदलोकाकाशमिति जीवाद्याधारकृतो भेदोऽन्यथा एकमेवाकाशम् । मर्त्यलोकिकः कालः । मर्त्यलोको मनुष्यलोकः-अर्धतृतीया द्वीपाः समुद्रद्वयं च मानुषोत्तरमहीधरेण परिक्षिप्तः । तावत्येव क्षेत्रे वर्तमानादिलक्षणः कालो न परतः । लोकव्यापिचतुष्टयमवशेषं धर्माधर्मजीवपुद्गलाख्यम् । सर्वत्र लोकाकाशे धर्माधौं । सूक्ष्मशरीराश्च जन्तवः सर्व लोक एव । पुद्गलाश्च परमाणुप्रभृतयः सर्वलोक इति । एकोऽपि वा जीवः सकललोकाकाशव्यापी केवलिसमुद्रातकाल एव भवतीति ॥ २१३ ॥
अर्थ-आकाश लोक और अलोकमें व्यापक है । कालका व्यवहार मनुष्यलोकमें ही होता है । बाकीके चार द्रव्य लोकव्यापी हैं । एक जीव भी लोकव्यापी होता है।
१-नास्ति पदमिदं फ. पुस्तके । २-हरिभद्रसूरिकी वृत्ति में १२ कल्पोंके १३ मेद, नवग्रैवेयकका एक भेद, पाँच अनुत्तरों का एक भेद और सिद्ध शिलाका एक भेद, इस प्रकार पन्द्रह भेद गिनाये हैं।