________________
कारिका १४६-१४७-१४८ ] प्रशमरतिप्रकरणम् आदिके समयमें भी अकल्प्य कल्प्य हो जाता है । राजघराने वगैरहके किसी बड़े पुरुषने दीक्षा ली हो तो उसके लिए अकरप्य भी कल्प्य होता है । बीमारी आदिमें वैद्यके कहनेसे अकल्प्य भी कल्प्य होता जीवसे संयुक्त वस्तु, अकल्प्य है; किन्तु यदि दूसरी वस्तु न मिले तो अच्छी तरह देख-भालकर वही करप्य हो जाती है । तथा शुद्ध भावोंके होनेपर भी अकरप्प करप्य हो जाता है । अतः कोई वस्तु न सर्वथा कल्प्य ही होती है और न सर्वथा अकल्प्य ही । देश, काल वगैरहकी अपेक्षासे करप्य अकल्प्य हो जाता है और अकल्प्य भी कल्प्य हो जाता है।
एवमनैकान्तिकं कल्प्याकल्प्यविधि निरूप्य योगत्रयनियमनायाह संक्षेपतः
इस प्रकार अनेकान्तवादके अनुसार कल्प्य और अकल्प्यकी विधिको बतलाकर मन, वचन और काय योगको वशमें करनेके लिए संक्षेपमें कथन करते हैं:
तचिन्त्यं तद्भाष्यं तत्कार्यं भवति सर्वथा यतिना।
नात्मपरोभयबाधकमिह यत्परतश्च सर्वाद्धम् ॥ १४७॥
टीका-मनसा तदेव चिन्त्यम्--आलोच्यमातरौद्रध्यानद्वयव्युदासेन यन्नात्मनः परस्योभयस्य बाधकं भवति । वाचाऽपि तदेव भाप्यं भाषणीयं यन्नात्मादीनां बाधकं भवति सर्वथा। यतिना कायेनापि धावनवल्गनादिक्रियात्यागेन तदेव कार्य कर्तव्यं यन्नात्मादीनां बाधक भवति । सर्वार्द्धमिति-अद्धा कालः, 'सर्वकालम्' इत्यर्थः। वर्तमानेऽनागते च। तत्रापि वर्तमाना व्यावहारिकः परिग्राह्यः, अनागतश्च सर्व एव । अतो मनोवाक्कायैः सम्यग्व्यापाराः कार्यास्तथा यथा स्वल्पोऽपि कर्मबन्धो न जायते इति ॥ १४७ ।।
अर्थ-मुनिको सब प्रकारसे वही विचारना चाहिए, वही बोलना चाहिए और वही करना चाहिए, जो इस लोक और परलोकमें सर्वदा न अपनेको दुखदायी हो, न दूसरोंको दुखदायी हो और न उभय को दुखदायी हो।
- भावार्थ-आर्तध्यान और रौद्रध्यानको छोड़कर मनसे वही विचारना चाहिए जो अपनेको, दूसरोंको, और दोनोंको कभी भी बाधक न हो। वाणीसे भी ऐसी ही बात बोलनी चाहिए जो अपनेको और दूसरोंको कभी भी कष्ट देनेवाली न हो। तथा शरीरसे भी वही चेष्टा करनी चाहिए जो अपनेको और दूसरोंको कभी भी कष्ट देनेवाली न हो। सारांश यह है कि मन, वचन और कायसे इस रीतिसे काम लेना चाहिए कि उससे थोड़ासा भी कर्म-बन्ध न हो।
सम्प्रति इन्द्रियनियममाचष्टे-- अब इन्द्रियोंको वशमें करनेके लिए कहते हैं :
सर्वार्थेष्विन्द्रियसंगतेषु वैराग्यमार्ग विधेषु । परिसंख्यानं कार्य कार्य परमिच्छता नियतम् ॥ १४८ ॥ १-वलानादि-प०, फ०, ५०