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________________ ३७३ श्राद्धविधि प्रकरण बोमा पंचमी अठठमी। एगारसी चउदसी पणतिहिमो॥ एमामोसम तिहियो। गोत्रम गणहारिणा भणिया ॥२॥ द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, ये पांच तिथियें गौतम गणधर भगवंत ने श्रुतज्ञान के आराधन करनेकी बतलाई हैं। वीमा दुविहे धम्मे। पंचपी नाणेस अठठमी कम्मे ॥ एगारसी अंगाणं। चउदसी चउद पुवाणं ॥३॥ द्वितीया की आराधना करनेसे दो प्रकारके धर्मकी प्राप्ति होती है, पंचमोकी आराधना करनेसे पांच शानकी प्राप्ति होती है, अष्टमीकी आराधना अष्टकर्म का नाश कराती है, एकादशी की आराधना एकादशांग के अर्थको प्राप्त कराती है, चतुर्दशी की आराधना चौदह पूर्वकी योग्यता देती है। इस प्रकार एक पक्षमें उत्कृष्ट से पांच पर्वणी होती हैं। और पूर्णिमा तथा अमावस्या मिलानेसे हर एक पक्षमें छह पर्वणी होती है। वर्ष में अठाई, चौमासी, वगैरह अन्य भी बहुतसी पर्वणी आती हैं। उनमें यदि सर्वथा आरम्भ वर्जन न किया जा सके तथापि अल्प अल्पतर आरंभसे पर्वणीकी आराधना करना। सचित्त आहार जीवहिंसात्मक ही होनेसे महा आरम्भ गिना जाता है इससे उसका त्याग करना चाहिये । तथा मूलमें जो अनारम्भपद है उससे पर्व दिनोंमें सर्व सचित्त आहारका परित्याग करना चाहिये। क्योंकि. आहार निमित्रोण। मच्छा गच्छंति सत्तमि पुढवि ॥ सचित्तो पाहारीन खमो मणसावि पथ्थे॥१॥ आहार के निमित्त से तन्दुलिया मत्स्य सातवीं नरक में जाता है, इसलिये सचित्त आहार खानेकी (पर्वमें मनसे भी इच्छा न करना ) मना है। इस ववनसे मुख्यवृत्या श्रावक को सचित आहार का सर्वदा त्याग करना चाहिये । कदाचित् सर्वदा त्यागने के लिये असमर्थ हो तो उसे पर्ष दिनोंमें तो अवश्य त्यागना चाहिये। इस तरह पर्घ दिनोंमें स्नान, मस्तक धोना, संवारना, गूथना, वस्त्र धोना, या रंगवाना, गाड़ी, हल चलाना, यंत्र वहन करना, दलना, खोटना, पीसना, पत्र, पुष्प, फल वगैरह तोड़ना, सचित्त खडिया मिट्टी वर्णिकादिक मर्दन करना, कराना, धान्य वगैरह को काटना, जमीन खोदना, मकान लिपवाना, नया घर बंधवाना, वगैरह वगैरह सर्व आरम्भ समारम्भ का यथाशक्ति परित्याग करना। यदि सर्व आरम्भ का परित्याग करने से कुटुम्बका निर्वाह न होता हो तो भी गृहस्थको सचित्त आहार का त्याग अवश्य करना चाहिये। क्योंकि वह अपने स्वाधीन होने से सुख पूर्वक हो सकता है। विशेष बीमारी के कारण यदि कदाचित् सर्व सचित्त आहार का त्याग न हो सके तथापि जिसके बिना न चल सकता हो वैसे कितने एक पदार्थ खुले रखकर शेष सर्व सचित्त पदार्थों का त्याग करे । तथा आश्विन मासकी अष्टान्हिका और चैत्री अष्टान्हिका आदिमें विशेषतः पूर्वोक्त विधिका पालन करे । यहां पर आदि शब्दसे चातुर्मास की और पर्युषणा की अष्टाम्हिका में भी सचित्त का परित्याग करना समझना।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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