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________________ श्राद्धविधि प्रकरण अपने द्रव्यको खर्च करने का यथायोग्य धर्मका उपदेश करता रहे। तथा स्त्री पुत्र मित्र भाई नौकर भगिनी लड़केकी बहू पुत्री पौत्र पौत्री चाचा भतीजा मुनीम वगैरह स्वजनों को उपदेश करता रहे। इतना विशेष समझना । दिनकृत्यमें भी कहा है कि: सन्चनुणा पणीअन्तु । जई धम्मं नाव गाहए ॥ इहलोए परलोएम तेर्सि दोसेण लिम्पई ॥१॥ जेण लोगट्टिइ एसा । जो चोरभत्त दायगो ॥ लिप्पइ तस्स दोसेण । एवं धम्मे वि आणह ॥२॥ तम्माहु नाय तस्तेषां । सदेणं तु दिगो दिणे ॥ दबभो भावभो चेव । कायव्य पणुसासण॥॥ सर्वज्ञ बीतरागने कहा है कि यदि स्वजनोंको धर्ममें न जोड़े तो इस लोकमें और परलोकमें उनके किये हुये पापसे स्वयं लेपित होता है। इस लिये इस लोककी स्थिति ही ऐसी है कि जो मनुष्य चोरको खाने पीनेके लिये अन्नपानी देता है या उसे आश्रय देता है वह उसके किये हुये पाप रूप कीचड़में सनता है। धर्ममें भी ऐसा ही समझ लेना। इस लिये जिसने धर्मतत्व को अच्छी तरह जान लिया है ऐसे श्रावक को दिनोंदिन द्रव्यसे और भावसे स्वजन लोगोंकी अनुशासना करते रहना। द्रव्यसे अनुशासना याने पोषण करने योग्य हो उसका पोषण करना । उस न्यायसे पुत्र, स्त्री, दोहित्रादिकों को यथा योग्य वस्त्रादिक देना और भावसे उन्हें धर्ममें जोड़ना । अनुशासना याने वे सुखी हैं या दुखी इस बातका ध्यान रखना। अन्य नीतिशास्त्रों में भी कहा है:' राज्ञि राष्ट्रकृतं पापं । राज्ञ पापं पुरोहिते ॥ भर्तरि स्वीकृतं पापं । शिष्यपापं गुरावपि ॥१॥ यदि शिक्षा न दे तो देशके लोगोंका पाप राजा पर पड़ता है, राजाका पाप पुरोहित-राजगुरू पर पड़ता है, स्त्रीका किया हुआ पाप पति पर पड़ता है, और शिष्यका पाप गुरु पर पड़ता है । स्त्री पुत्रादिक घरके कामकाज में फुरसत न मिलनेसे और चपलता के कारण या प्रमाद बाहुल्यसे गुरुके पास आकर धर्म नहीं सुन सकता तथापि स्वयं प्रति दिन उन्हें उपदेश करता रहे तो इससे वे भी धर्मके योग्य होते हैं और धर्ममें प्रवर्तमान होते हैं, ___ धन्यपुर में रहनेवाला धनासेठ गुरुके उपदेश से सुश्रावक हुआ था। वह प्रति दिन संध्याके समय अपनी स्त्री और अपने चार पुत्रोंको उपदेश दिया करता था। अनुक्रम से स्त्री और तीन पुत्रोंको बोध प्राप्त हुआ, परन्तु चौथा पुत्र नास्तिक होनेसे पुण्य पाप कहाँ है ? इस प्रकार बोलता हुआ बोधको प्राप्त नहीं होता इससे धनासेठ उसे बोधदेने की चिन्तामें रहता था। एक दिन उसके पड़ोसमें रहने वाली किसी एक वृद्धा सुधाविका को अन्त समय धनासेठ ने निर्यामना करा कर बोध दिया और कहा कि यदि त् देव बने तो मेरे पुत्रको बोध देना। वह मृत्यु पाकर सौधर्म देवलोक में देवी उत्पन्न हुई । उसने अपनी ऋद्धि दिखला कर धनासेठ के पुत्रको प्रतिबोधित किया। इसी प्रकार गृहस्थको भी अपने स्त्री पुत्रको प्रतिबोध देना चाहिये। कदाचित् वे बोध न पायें तो उसे कुछ दोष नहीं लगता। इसलिये कहा है कि:न भवति धर्म श्रोतुः । सर्वस्य कांततो हितः श्रवणाद ॥ ब्रुवतोनिग्रह बुद्धया। वक्तुस्त्वेकांततो भवति ॥१॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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