SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरण प्राक द्रवं पुरुषोऽश्नाति । मध्ये च कटुकं रसं॥ अन्ते पुनद्रवाशी च । बलारोग्यं न मुञ्चति ॥१८॥ पहले पतला पदार्थ खाना चाहिये; बीचमें कटु रस वाला खाना चाहिये, और अन्तमें पतला पदार्थ खाना योग्य है । इस प्रकार भोजन करने वालेको बल, और आरोग्यकी प्राप्ति होती है। __ आदौ मंदाग्नि जननं । मध्ये पीतं रसायनं ॥ भोजनान्ते जलं पीतं। तज्जलं विष सनिभं ॥१६॥ भोजन से पहले पीया हुआ पानी मंदाग्नि करता है, भोजन के बीचमें पीया हुआ पानी रसायन के समान गुण कारक है । और अन्तमें पीया हुआ विष तुल्य है। भोजनानन्तर सव । रस लिप्तेन पाणिना ॥ एकः प्रतिदिनं पेयो। जलस्य चुलुकोंगिना ॥२०॥ भोजन किये बाद सर्व रससे सने हुये हाथ द्वारा मनुष्य को प्रतिदिन एक चुलु पानी पीना चाहिये। अर्थात् भोजन किये बाद तुरन्त ही अधिक पानी न पीना चाहिये। न पिवेत्पशुवत्तीयं । पीतशेषं च वर्जयेत् ॥ तथा नां जलिना पेयं । पयः पथ्यं मितं यतः॥२१ ॥ पशुके समान पानी न पीना चाहिये। पीये बाद बचा हुआ पानी तत्काल ही फेंक देना चाहिये। तथा अंजलि याने ओक से पानी न पीना चाहिये क्योंकि प्रमाण किया हुआ पानी पथ्य गिना जाता है। करेण सलिलादण। न गंडौ नापर कर॥ . नेक्षणे च स्पृशोकिन्तु । स्पृष्टव्ये जानुनी श्रिये ॥२२॥ भोजन किये बाद भीने हाथसे मस्तकको, दूसरे हाथको, आंखोंको स्पर्श न करना चाहिये। तब फिर क्या करना चाहिये ? लक्ष्मीकी वृद्धिके लिये अपने गोडोंको मसलना चाहिये। "भोजन किये वाद करने न करनेके कार्य" अंगपई न नीहारं। भारोतक्षेपोपवेशनं ॥ स्नानाद्यच कियत्कालं। भुक्त्वा कुर्यान्न बुद्धिमान् ॥२३॥ भोजन किये बाद बुद्धिमान को तुरन्त ही अंगमर्दन, टट्टी जाना, भार उठाना, बैठ रहना, स्नान, वगैरह कायन करने चाहिये। भुक्त्वोपविशतस्तु'दं। बलमुत्तानशायिनः ॥ . प्रायुमिकटिस्थस्य। मृत्युर्धावति धावतः ॥२४॥ भोजन करके तुरन्त ही बैठ रहने वालेका पेट बढ़ता है, चित सोने वालेका बल बढ़ता है, बायां अंग दबाकर बैठने वालेका आयुष्य बढ़ता है और दौड़नेसे मृत्यु होती है।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy