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श्राद्धविधि प्रकरण उसका मूल है, जिसके विना प्राणी जो कुछ तप, जप, व्रत, कष्टानुष्ठानादिक करता है, वह सब वंध्य वृक्ष के समान व्यथ हैं। वह सम्यक्त्व भी तीन तत्व सद्दहणारूप है। वे तीन तत्व-देव, गुरू, और धर्म शुद्ध तत्वरूप है। उन तीनों तत्वोंमें भी प्रथम देवतत्व अरिहंत को समझना चाहिए, अरिहन्त देव में भी प्रथम अरिहन्त श्री युगादिदेव (ऋषभदेव ) हैं । अत्यंत महिमावन्त ये देव जिस तीर्थपर विराजते हैं वह सिद्धाचल नामा तीर्थ भी महाप्रभाविक है । यह विमलाचल नामा तीर्थ तमाम तीर्थों में मुख्य है; ऐसा सब तीर्थंकरों ने कथन किया है। इस तीर्थ के नाम भी जुदे जुदे कार्यों के भेद से इक्कास कहे जाते हैं । जैसे कि, १ सिद्धक्षेत्रकूट, २ तीर्थराज, ३ मरुदेवीकूट, ४ भगीरथकूट, ५ विमलाचलकूट, ६ बाहुबलीकूट, ७ सहस्रकमलकूट, ८ तालध्वजकूट, ६ कदम्बगिरिकूट, १० दशशतपत्रकूट, ११ नागाधिराजकूट, १२ अष्ठोत्तरशतकूट, १३ सहस्रपत्रकूट, १४ ढंककूट, १५ लोहित्यकूट, १६ कपर्दिनिवासकूट, १७ सिद्धिशेखरकूट, १८ पुंडरिक, १६ मुक्तिनिलयकूट, २० सिद्धिपर्वतकूट, १ शत्रुजयकूट । इसप्रकार के इक्कीस नाम कितनेएक मनुष्यकृत, कितनेएक देवकृत, और कितनेएक ऋषिकृत मिल कर इस अवसर्पिणी में हुए हैं। गत अवसपिणी में भी इसीप्रकार दूसरे इक्कीस नाम हुए थे और आगामी अवसर्पिणीमें भी प्रकारांतरसे ऐसे ही नूतन इक्कीस नाम इस पर्वतके होंगे। इस वर्तमान अवसर्पिणी में जो इक्कीस नाम आपके समक्ष कहे उनमें से शत्रुजय जो इक्कीसवां नाम आया है वह तेरे आगामी भवसे तेरेसे ही प्रसिद्ध होगा। इसप्रकार भी हमने ज्ञानी महात्मा के पास सुना हुवा है । सुधर्मा स्वामी के रचे हुए महाकल्प नामक प्रन्थमें इस तीथ के अष्टोत्तरशत (एक सो आठ) नाम भी सुने हैं, और वे इसप्रकार हैं। १ विमलाचल, २ देव. पर्वत, ३ सिद्धिक्षेत्र, ४ महाचल, ५ शत्रुजय, ६ पुंडरिक, ७ पुण्यराशि, ८ शिवपद, ६ सुभद्र, १० पर्वतेन्द्र, ११ दृढ़शक्ति, १२ अकर्मक, १३ महापद्म, १४ पुष्पदंत, १५ शाश्वतपर्वत, १६ सर्वकामद, १७ मुक्तिगृह, १८ महातीर्थ, १६ पृथ्वीपीठ, २० प्रभुपद, २१ पातालमूल, २२ कैलासपर्वत, २४ क्षितिमण्डल, २४ रैवतगिरि, २५ महागिरि, २६ श्रीपदगिरि, २७ इन्द्रप्रकाश, २८ महापर्वत, २६ मुक्तिनिलय, ३० महानद, ३१ कर्मसूदन, ३२ अकलंक, ३३ ३३ सुंदर्य, ३६ विभासन, ३५ अमरकेतु, ३६ महाकर्मसूदन, ३७ महोदय, ३८ राजराजेश्वर, ३६ ढींक, ४० मालवतोय, ४१ सुरगिरि, ४२ आनन्दमन्दिर, ४३ महाजस, ४४ विजयभद्र, ४५ अनन्तशक्ति, ४६ विजयानन्द ४७.महाशैल, ४ भद्रकर, ४६ अजरामर, ५० महापीठ, ५१ सुदर्शन, ५२ अर्चगिरि, ५३ तालध्वज, ५४ खेमकर, ५५ अनन्तगुणाकर, ५६ शिवंकर, ५७ केवलदायक, ५८ कर्मक्षय, ५६ ज्योतिस्वरूप, ६० हिमगिरि, ६१ नागा. धिराज, ६२ अचल, ६३ अभिनन्द, ६४ स्वर्ण, ६५ परमश्रम, ६६ महेंद्रध्वज, ६७ विश्वाधीश, ६८ कादम्बक, ६६ महीधर, ७० हस्तगिरि, ७१ प्रियंकर, ०२ दुखहर, ७३ जयानन्द, ७४ आनन्दधर, ७५ जसोदर, ७६ सहखकमल, ७७ विश्वप्रभावक, ७८ तमोकन्द, ७६ विशालगिरि, ८० हरिप्रिय, ८१ सुरकांत, ८२ पुन्यकेस, ८३ विजय, ८४ त्रिभुवनपति, ८५ वैजयन्त, ८६ जयन्त, ८७ सर्वार्थसिद्ध, ८८ भवतारण, ८६ प्रियंकर, ६० पुरुषोत्तम, ६१ कयम्बू, ६२ लोहिताक्ष, ६३ मणिकांत, ६४ प्रत्यक्ष, ६५ असीविहार, ६६ गुणकन्द, ६७ गंजचन्द्र, ६८ जगतरणी, ६६ अनन्तगुणाकर, १०० नगश्रेष्ठ, १०१ सहेजानन्द, १०२ सुमति, १०३ अभय, १०४ भव्यगिरि, १०५ सिखशेखर, १०६ अनन्तरलेस, १०७ श्रेष्ठगिरि, १०८ सिद्धाचल।