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श्राद्धविधि प्रकरण बनानेकी युक्ति सीखली । इस प्रकार सिद्धि रस, दूसरी चित्र बेल, और तीसरी सुवर्ण सिद्धि इन तीन पदार्थों के महिमासे वह अनेक कोटिश्वर बन बैठा । परन्तु अन्यायसे उपार्जन किया हुवा होनेके कारण और पहले निर्धन था फिर धनवान बना हुवा होनेसे किसी भी सुकृतके आचरणमें, सजन लोगोंके कार्यों में या दीन हीन, दुःखी, लोगोंको सुख देनेकी सहायता के कार्यमें या अन्य किसी अच्छे कार्यके उपयोगमें उस धन से उससे एक पाई भी खर्च न हो सकी। मात्र एक अभिमान, मद, कलह, क्लेष, असन्तोष, अन्याय, दुर्बुद्धि, छल, कपट, और प्रपंच करनेके कार्यमें उस धनका उपयोग होने लगा। अब इतनेसे वह राँका शेठ वारंवार लोगोंपर एवं दूसरे सामान्य ब्यापारियों पर नया नया कर, नये नये कायदे उन्हें अलाभ कारक और स्वतःको लाभ कारक नियम करने लगा, तथा दूसरोंको कुछ धन कमाता देख उनपर ईर्षा, द्वेष, मत्सर, रखकर अनेक प्रकारसे उन्हें हरकत पहुंचाने में ही अपनी चतुराई मानने लगा। हरएक प्रकारसे लेने देने वाले व्यापारियोंको सताने लगा। मानो सारे गांवके व्यापारियोंका वह एक जुलमी राजा ही न हो। इस प्रकारका आचरण करनेसे उसकी लक्ष्मी लोगोंको काल रात्रिके समान मालूम होने लगी।
एक समय राँका शेठकी पुत्रीके हाथमें एक रत्न जड़ित कंघी देख कर बल्लभीपुर राजाकी पुत्रीने अपने पितासे कहकर मंगवाई, परन्तु अति लोभी होनेके कारण उसने वह कंघी न दी। इससे कोपायमान हो शिलादित्य राजाने किसी एक छल भेदसे उस कंघीको मंगवा कर वापिस न दी। इससे राँका शेठको बड़ा क्रोध चढ़ा, परन्तु करे क्या राजाको क्या कहा जाय ! अब उसने बदला लेनेके लिये अपर द्वीपमें रहने वाले महा दुर्धर मुगल राजाको करोड़ रुपये सहाय देकर शिलादित्यके ऊपर चढ़ाई करनेको प्रेरित किया। यद्यपि मुगल लोगोंकी लाखों सैना चढ़ आई थीं तथापि उस सेनासे जरा भी भय न रखकर शिलादित्य राजाने उन्होंके सामने सूर्य देवके वरदानसे मिले हुये अश्वकी सहायतासे सहर्ष संग्राम किया। (उसमें इतना चमत्कार था कि शिलादित्य राजाको सूर्यने बरदान दिया था कि जब तुझे संग्राम करना हो तब एक मनुष्यसे शंख बजवाना फिर मैं तुझे अपने स्वयं चढ़नेका घोड़ा भेज दूंगा। उस घोड़े पर चढ़ कर जब तू शंख बजा. येगा तब शीघ्र ही वह घोड़ा आकाशमें उड़ेगा। वहांसे तू शत्रुओंके साथ युद्ध करना जिससे दिनमें घोड़ेके प्रतापसे तेरी विजय होगी) युद्धके समय शिलादित्य राजा सूर्यके वरदान मुजब शंख वाद्यके आवाजसे सूर्य का घोड़ा बुलाकर उस पर चढ़ता है, फिर शंख बजानेसे वह घोड़ा आकाशमें उड़ता है, वहां अधर रह कर मुगलोंके साथ लड़ते हुए बिलकुल नहीं हारता। एवं मुगलोंका सैन्य भी बड़ा होनेसे लड़ाई करनेमें पीछे नहीं हटता, तथापि घोड़ा ऊंचे रहनेसे उनका जोर नहीं चल सकता । यह बात मालूम पड़नेसे राँका शेठ जो मनुष्य शंख बजाया करता था उससे पोशिदा तौर पर मिला और कुछ गुप्त धन देकर उसे समझाया कि शंख बजानेसे घोड़ा आये बाद जब राजा उस पर सवार ही न हुवा हो उस वक्त शंख बजाना; जिससे वह घोड़ा आकाशमें उड़ जाय और राजा नीचे ही रह जाय। इस प्रकार शंख बजाने वालेको कुछ लालच देकर फोड़ लिया। उसने वैसा ही किया, धनसे क्या नहीं बन सकता ? ऐसा होनेसे शिलादित्य राजा हा हा! अब क्या किया जाय ? इस तरह पश्चात्ताप करने लगा; इतनेमें ही मुगल लोगोंके सुभटोंने आकर हल्ला करके