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श्राद्धविधि प्रकरण त्सव किया। थावच्चापुत्र ने एक हजार व्यापारी पुत्रोंके साथ प्रभुके पास दीक्षा ली। फिर चौदह पूर्व पढ़कर पांच सौ दीवान सहित शेल्लक राजाको श्रावक करके वे सौगन्धिका पुरीमें पधारे । उस वक्त वहां पर त्रिदंड, २ कुडिका, ३,छत्र, ४ छ नलीवात्वा तापसका खप्पर, ५ अंकुश, ६ पवित्री, ७ केशरी, हाथमें लेकर गेरुसे रंगे हुए लाल वस्त्रके घेशको धारण करनेवाला, सांख्यशास्त्र के परमार्थ को धारण करने और उपदेश करनेवाला, प्राणातिपात विरमणादिक पांच, और छ शौचयम, ७ सन्तोषयम, ८ तपोयम, ६ स्वाध्याययम, १० ईश्वरप्रणिधानयम, इन पांच यममय दस प्रकारके शौचमूल परिव्राजक का धर्म पालनेवाला और दानादिक धर्मका प्ररूपना करनेवाला, एक हजार शिष्योंके परिवार सहित व्यासका शुक नामक पुत्र परिव्राजक था। उसने प्रथमसे शौचमूल धर्म, अंगीर कराये हुए सुदर्शन नामक नगर शेठको थावच्चा पुत्राचार्यने विनय और सम्यक्त्व मूलश्रावक धर्म अंगोकार कराया। तब सुख परिघ्राजक ने थावच्चा पुत्राचार्यको प्रश्न पूछा:
"सरिसवया भंते भरूखा अभख्खा"। ते दुविहा पित्तसस्सिवया। धन्नसरिसवया। पढमा तिविहा सहजाया सहवढिया सहपंसुकीलिया। ए ए समणाणं अभख्खा ॥ धनसरिसवया दुव्विहा । सध परिणया इयरेमा पढमा दुविहा फासुमा अन्नेअफासुप्रावि जाइया अजाइमाय। जाइ प्रावि एसणिझ्झा अन्ने। एसणिझ्झावि लद्धा अलदाय विइन सव्वथा अभख्खा पढयां भख्खा एवं कुलथ्या वि मासावि नवरं मासा तिविहा काल अथ्य धन्न ते ॥
प्रश्न-हे महाराज ! सरिसवय भक्ष है या अभक्ष ? उत्तरमें थावच्चाचार्यने कहा सरिसवय दो प्रकारके होते हैं। एक मित्र सरिसवय और दूसरा धान्य सरिसवय । यहां आचार्यने सरिसवय के दो अर्थ गिने हैं। एक तो सरिसवय (बराबरी की अवस्था वाले) और दूसरा सरसव नामक धान्य । उसमें मित्र सरिसवय तीन प्रकारके होते हैं। एक साथ जन्मे हुए, दूसरे साथ वृद्धिको प्राप्त हुए, दूसरे साथमें खेल क्रीड़ा की हो वैसे ये तीनों प्रकारके साधुको अभक्ष्य है। धान्य सरसव दो प्रकारके होते हैं, एक शस्त्र परिणत दूसरा अशा परिणत (पेड़ लगे हुए या पौदे वाले ) शस्त्र परिणत दो प्रकारके होते हैं, एक मांगे हुए दूसरे अयाचित । याचित भी दो प्रकारके होते हैं, एक एषणीय (४२ दोष रहित) और दूसरे अनेषणीय । उनमें एषणीय भी दो प्रकारके होते है, एक लाधे हुए, (बोराये हुए ) दूसरे अलाधे हुए ( उसीके घरमें पड़े हुए) इस धान्य सरसवमें पीछले २ प्रकार वाले सब अभक्ष और पहले २ भेदवाले सब साधुको शुभ हैं। ऐसे ही कलत्थके भी भेद समझ लें। माषके भी भेद समझना । माष याने उड़द । परन्तु सामान्य माष शब्दके तीन भेद कल्पित किये गये हैं। एक काल माष दूसरा अर्थ माष (मांस ) तीसरा धान्य माष। ये तीन भेद कल्पित कर उनमें से धान्य माष भक्ष बतलाया है। ऐसे ही कितनेक अर्थ खुलासे पूछ कर सुखपरिव्राजक ने बोध पाकर हजार शिष्यों सहित थावश्चाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की। थावञ्चाचार्य ने सुखपरिव्राजक को आचार्य पदवी देकर शत्रुञ्जय तीर्थ पर जाकर सिद्धि पदको प्राप्त हुए । हजार शिष्य सहित सुकाचार्य भी शेल्लकपुर के शेलक नामा राजाको पंथकादिक पांच सो प्रधान सहित दीक्षा देकर शेलक मुनिको आचार्य पद समर्पण कर सिद्धाचल पर सिद्ध पदको प्राप्त हुये। अब शेलकाचार्य ग्यारह अंग पढ़कर पंथादिक पांचसौ शिष्यों सहित विचरते हुए, शुष्क आहार