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श्राद्धविधि प्रकरण जिससे उन सब देशोंको प्रजा सब प्रकारसे सुखमें ही रहती थी, पूर्वभवमें एक लाख पंखड़ीवाला कमल भगवान पर चढाया था उससे ऐसी बड़ी राज्यसंपदा पाया है तथापि त्रिकाल पूजा करनेवाले पुरुषोंमें धर्मदत्त अग्रणी पद भोगता है। इतना ही नहीं परन्तु अपने उपकारी का अधिक सन्मान करना योग्य समझ कर उसने उस त्रिकाल पूजामें वृद्धि की, वहुतसे मन्दिर बनवाये; वहुतसी संघयात्रायें की बहुतसी रथयात्रा, तीर्थयात्रा, स्नात्रादिक महोत्सव करके उसने अधिकाधिक प्रकारसे अपने उपकारी धर्मका सेवन किया, इससे वह दिनों दिन अधिकाधिक सर्व प्रकारकी संपदायें पाता गया। 'यथा राजा तथा प्रजा' जैसा राजा वैसी ही प्रजा होती है, ऐसी न्यायोक्ति होनेसे उसकी सर्व प्रजा भी अत्यंत नीति मार्गका अनुसरण करती हुई जैनधर्मी होनेसे दिन पर दिन सर्व प्रकारसे अधिकाधिक कलाकौशल्यता
और ऋद्धि समृद्धिवाली होने लगी। धर्मदत राजाने योग्य समयमें अपने बड़े पुत्रको राज्य समर्पण कर के अपना कितनी एक रानिया साहत सद्गुरुके पास दक्षिा लेकर अरिहंत का भक्तिम अत्यतं लान हो वतनसे अन्तमें तीर्थंकर गोत्र उपार्जन किया। वह अपना दो लाख पूर्वका सर्वायु पूर्णकर अन्तमें समाधीमरन पा के सहस्रार नामा आठवें देवलोक में महर्धिक देव उत्पन्न हुवा, इतना ही नहीं परंतु उसकी चार मुख्य रानियां शुद्ध संयम पाल कर उसी तीर्थंकर के गणधर होनेका शुभ कर्म निकाचित बंधन करके काल कर उसी देवलोकमें मित्रदेव तया उत्पन्न हुई । ये पाचों जीव वहांसे च्यव कर महाविदेह क्षेत्रमें तीर्थंकरगणधर पद भोग कर साथ ही मोक्ष पदको प्राप्त हुये। ___इस प्रकार श्री जिनराजदेव की विधिपूर्वक वहुमान से की हुई पूजाका फल प्रकाशित हुवा, ऐसा जानकर जो पुरुष ऐसे शुभ कार्यों में विधि और बहुमान से जिनराज की पूजामें उद्यम करता है सो भी ऐसाही उत्तम फल पाता है। इसलिये भव्यजीवोंको देवपूजादि धर्मकृत्य विधि और वहुमान पूर्वक करना चाहिये
“मन्दिरकी उचित चिन्ता-सार संभाल" "उचिय चिन्त रो” उचितःचिन्तामें रहे। मन्दिरकी उचित चिन्ता याने वहांपर प्रमार्जना करना कराना विनाश होते हुए मन्दिरके कोने या दीवार तथा पूजाके उपकरण, थाली, कचौली, रकेवी, कुंडी, लोटा कलश वगरह की संभाल रखना, साफ कराना, शुद्ध कराना, प्रतिमाके परिकर को उगटन कराकर निर्मल कराना, दोपकादि साफ रखने, जिसका स्वरूप आगे कहा जायगा ऐसी आशातना वर्जना। मंदिरके बादाम, चावल, नैवेद्यको, संभाल कर रखना, बेचनेकी योजना करना; उसका पैसा खातेमें जमा करना, चन्दन केशर, धूप,घी, तेल प्रमुखका संग्रह करना; जो युक्ति आगे बतलायी जायगी वैसी युक्तिसे चैत्य द्रव्यकी रक्षा करना तीन या चार या इससे अधिक श्रावकोंको साक्षी रखकर मन्दिरका नांवा लेखा और उघरानी करना कराना उस द्रव्यको यतनासे सबकी सम्मति हो ऐसे उत्तम स्थान पर रखना, उस देव द्रव्यकी आय, और व्यय वगैरह का साफ हिसाब रखना और रखाना । तथा मन्दिरके कार्यके लिए रक्खे हुए नौकरोंको भेज कर देवद्रव्य वसूल कराना, उसमें देवद्रव्य कहीं दब न जाय ऐसी यतना रखना, उस काममें योग्य पुरुषोंको रखना, उघरानीके योग्य देवद्रव्य की रक्षा करनेके योग्य, देवका कार्य करनेके योग्य, पुरुषोंको रखकर उन पर निगरानी