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श्राद्धविधि प्रकरण कुमारको बुलानेके लिए स्वयं राजपुरनगर आया। वहां उस कुमारके मुखसे खयम्बर के आमरण का वृतान्त सुन उसे अदृश्यरूप धारण कराकर साथ लेकर विचित्रगति विद्याधर स्वयं भो अदृश्यरूप धारण कर स्वम्बर मंडपमें आया। वहां बहुतसे राजाओंके बीच जाकर उसने अपनी विद्या बलसे स्वयम्बर मंडपमें बैठे हुए तमाम राजा और राजकुमारों के मुख बिलकुल श्याम बना दिये, इससे तमाम राजा और राजकुमार मनमें विचारने लगे कि, अरे! यह क्या हुवा? और क्या होगा? यह किसने किया ? जब वे यह विचार कर रहे हैं उस वक्त साक्षात् ऊगते हुए नूतन सूर्य के समान तेजली धर्मदत्तकुमार को स्वयम्बरा कन्याने देखा; उसे देखते ही पूर्वभव के प्रेमकी प्रेरणासे उसने उसके कंउमें कर. माला डाल दी तथा तीन दिशाके राजा भी वहां आये हुए थे उनकी भी कन्यायें धर्मदत्त के साथ ही व्याह देनेकी मरजी उनके पूर्वभव के प्रेमके सम्बन्धसे हो गई, इससे उन्होंने विचित्रगति विद्याधर के विद्याचल से अपनी २ कन्याओंको वहां ही बुलवा कर फिर विचित्रगति विद्याधर द्वारा क्यिाके योग्यसे की हुई अति मनो. हर सहायता से वहांपर ही चारों कन्याओंकी शादी धर्मदत्तके साथ कर दो। फिर वह विचित्रमति विद्याधर स राजाओंके समुदाय सहित धर्मदत्तकुमार को वैताढ्य पर्वत पर आये हुए अपने राज्यमें ले गया। वहां अपनी राज्यरिद्धि सहित उससे अपनी कन्याकी शादी की। तथा एक हजार सिद्ध विद्यायें भी उसे दीं। ऐसा भाग्यशाली पुरुष बड़े पुण्यसे मिलता है यह जानकर अन्य भी पांचसों विद्याधरों ने अपने २ ग्राममें ले जाकर धर्मदत्तको अपनी पांचसौ कन्यायें व्याहीं। ऐसी बड़ी राजरिद्धि और पांचसौ पांच रानियों सहित धर्मदत्तकुमार अपने पितासे मिलनेके लिये आया। उसके पिताने भो प्रसन्न होकर जैसे उत्तम लता उत्तम क्षेत्रमें ही बोई जाती है वैसे अपनी चारसौ निन्यानवें रानियोंके जो पुत्र थे उनका मन मनाकर अपना राज्य उसे ही समर्पण किया। फिर अपने सर्वपुत्र तथा रानियोंकी अनुमति ले अपनी प्रीतिमति पटरानी के सहित, राज्यन्धर राजाने चित्रगति विद्याधर ऋषिके पास दीक्षा ग्रहण की। क्योंकि जब अपने राज्यके भारको उठानेवाला धुरंधर पुत्र मिला तव फिर ऐसा कौन मूर्ख है कि, जो अपने आत्माके उद्धार करनेके अवसर को चूके। विचित्रगति विद्याधर ने भी धर्मदत्तकी रजा लेकर अपने पिताके पास दीक्षा ली। चित्रगति, विचित्रगति, राज्यन्धर, और प्रीतिमवि ये चारों जने शुद्ध संयमकी आराधना कर सम्पूर्ण कर्मोंको नष्ट कर उसी भवमें मोक्षपद को प्राप्त हुये।
___धर्मदत्तने राजा हुये बाद एक हजार देशके राजाओंको अपने वशमें किया। भातमें वह दशहजार हाथी, दसहजार रथ, दस लाख घोड़े, और एक करोड़ पैदल सैन्यकी ऐश्वर्यवाला राजाधिराज हुवा। अनेक प्रकारकी विद्यावा मदोन्मत हजारों विद्याधरों को भी उसने अपने वश किये। अन्तमें देवेन्द्र के समान अखंड बड़े राज्यका सुख भोगते हुए उसपर जो पहले देव प्रसन्न हुवा था। और जिस. ने उसे बरदान दिया था। उस देवका कुछ भी काय न पड़नेसे जब उसे कभी भी याद न किया गया तब उस देव ने स्वयं आकर देवकुरु क्षेत्रकी भूमिके समान उस राजाको जितनी भूमिमें आज्ञा मानी जाती है उन देशोंमें और उसके सामंत राजा एवं उसे खंडणी देनेवाले राजाओंके देशोंमें मारी वगैरह सर्व प्रकारके उपदब दूर किये;