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________________ श्राद्धविधि प्रकरण आशातनाके होनेका भय न रखकर अपवित्र अंगाले ( शरीर के किसी भी भागमेंसे रसी या राद वगैरह वहती हो तो ) देव पूजा करे अथवा जमीन पर पडे हुये फूलसे पूजा करे तो वह भवांतर में नीव चांडालकी गतिको प्राप्त करता है। १०८ उसका जन्म होते ही उसके उस समय कामरूप पट्टका " पूजामें आशातना करनेसे प्राप्त फलके विषयमें दृष्टांत" कामरूप पट्टन नगर मैं किसी एक चंडालके घर एक पुत्रका जन्म हुवा। पूर्वभव वैरी किसी व्यंतर देवने उसे वहांसे हरन कर कहीं जंगलमें रख दिया। राजा फिरता हुआ उसी जंगलमें जा निकला। उस बालकको जंगलमें पड़ा देख स्वयं अपुत्र होनेसे उसे उठा लिया और अपने घर लाकर उसका पुण्यसार नाम रक्खा। अब वह पोषण होते हुए यौवनावस्थाको प्राप्त हुवा | अन्तमें उसे राज्य देकर राजाने दीक्षा अंगीकार की और संयम पालते हुवे कितने एक समय बाद उसे केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई । अव वह केवलज्ञानी महात्मा पुनः उस नगर में पधारे तब पुण्यसार राजा । एवं नागरिक लोक उन्हें वंदन करनेको आये। इस अवसर पर पुण्यसारको जन्म देनेवाली जो चांडाली उसकी माता थी वह भी वहां पर आई। लव सभा समक्ष राजाको देखते ही उस चांडालीके स्तनमेंसे दूधकी धार छूटकर जमीन पर पडने लगी। यह देख राजाके मनमें आश्चर्यता प्राप्त होनेसे वह केवलज्ञानी से पूछने लगा कि " हे महाराज ! मुझे देखकर इस चांडालीके स्तनसे दूधकी धार क्यों बहने लगी ?” केवलीने उत्तर दिया "हे राजन् ? यह तेरी माता है, मैंने तो तुझे जंगल में पड़ा देख उठा लिया था" । राजा पूछने लगा "है स्वामिन्! मैं किस कर्मसे चंडालके कुलमें उत्पन्न हुआ ?" केवलीने कहा- “पूर्वभवमें तू व्यापारी था। तूने एक दिन जिनेश्चरकी पूजा करते हुए पुष्प जमीन पर पड़ा था वह चढाने लायक नहीं है ऐसा जानते हुये भी इसमें क्या है ऐसी अवज्ञा करके प्रभु पर चढाया था । इसीसे तु नीच गोत्रमें उत्पन्न हुआ है। कहा है कि:उचिट्ठे फल कुसुमं, नेवज्ज' बा जिणस्स जो देइ ॥ सो निगो कम्मं, बंधइ पायन्न जंम्मंमि ॥ १ ॥ अयोग्य फल या फूल या नैवेद्य भगवान पर चढावे तो परलोकमें पैदा होनेका नीच गोत्र बांधता है । तेरे पूर्व भवकी जो माता थी उसने एक दिन स्त्रीधर्म ( रजःस्वला ) में होने पर भी देवपूजाकी उस कर्म से मृत्यु पाकर वह चांडोली उत्पन्न हुई। ऐसे बचन सुनकर वैराग्यको प्राप्त हो राजाने दीक्षा ग्रहण करके देवगति को प्राप्त किया। अपवित्र पुष्पसे पूजा करनेके कारण नीचगोत्र बांधा इस पर यह मातंगकी कथा बतलाई । ऊपर दृष्टांत में बतलाये मुजब नीच गोत्र बंधता है इसलिये गिरा हुवा पुष्प यदि सुगंधी युक्त हो तथापि प्रभुपर न चढाना । जरा मात्र भी अपवित्र हो तो भी वह प्रभुपर चढाने योग्य नहीं । स्त्रीधर्ममें • आई हुई स्त्रियोंको किसी वस्तुको स्पर्श न करना चाहिये । " पूजा करते समय वस्त्र पहनने की रीति" पूर्वोक्त रीति से स्नान किये बाद, पवित्र, सुकुमाल, सुगंधी, रेशमी या सूती सुदर वस्त्र रूमाल आदिसे
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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