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________________ अधिकार ] .. यतिशिक्षा [ ५६९ है। एक दिनमात्रका चारित्र पालकर कितने ही जीव अनन्त काल तक अनन्त सुख भोग चुके हैं जिनके दृष्टान्त शाबमें सुप्रसिद्ध हैं । ऐसा सुख कब मिल सकता है ? जब सामायिक बराबर पाला हो, विराधना न की हो तब ही वह सुख प्राप्त हो सकता है, और इसी कारणसे शास्त्रकार भावस्तवसे अंतर्मुहूर्तमें मोक्ष प्राप्ति कहते हैं। सामायिक अर्थात् समताका जिसमें लाभ हो। साधु अपना सम्पूर्ण समय सामायिकमें ही व्यतीत करता है । पढ़नेवालेको आश्चर्य होगा परन्तु साधु खाते, पीते और निहारादि प्रत्येक क्रिया करते समय भी सामायकमें ही हैं, कारण कि सर्व कालमें वे आत्मिक उन्नति और संयम पालनेके उद्यममें ही लगे रहते हैं, एक क्षणमात्र सामायिक होनेसे तो ऊपर कहे अनुसार स्थूल सुख मिलता है । ऐसा महान ऊच्च प्रकारका साधुजीवन तुझे प्राप्त हुआ है । अब यदि थोड़ासा प्रमाद करके जो तू आलस्यमें समय व्यतीत करेगा या विषयकषायमें प्रवृत्ति करेगा तो अनन्त संसारकी वृद्धि होगी। ऊपर कहे अनुसार महान् लाभ न होगा और तत्पश्चात् संयमकी प्राप्ति होना भी कठिन होगा। संयमका फल-ऐहिक आमुष्मिक-उपसंहार. नाम्नापि यस्येति जनेऽसि पूज्यः, शुद्धात्ततो नेष्टसुखानि कानि.। तत्संयमेऽस्मिन् यतसे मुमुक्षो नुभूयमानोरुफलेऽपि किं न १॥ ५७ ॥ " संयमके नाममात्रसे भी जो तू लोकोमें पूज्य है तो यदि वह सचमुच शुद्ध हो तो कौनसा इष्ट फल तूझे न मिल
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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