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यतिशिक्षा
[५०७ योगचूदि'तुझे प्राप्त हो गये हों या घोर तपस्या-माससम्यादि तूने किये हों अथवा सूत्र सिद्धान्त के रहस्यको जानने योग्य या पियादिकका गीतार्थ योग्य कान तूने प्राप्तकर लिया हो और बिर यदि प्रतिष्ठा प्राप्त करनेकी अभिलाषा रखता हो तो कुछ मंशमें उचित है, (यद्यपि ऐसे विद्वान या तपस्यावान कभी भी मान नहीं करते हैं);परन्तु तू उनमें से क्या देखकर अभिमान करता है । सेरेमें ऐसा कौनसा असाधारण गुण है कि तू प्रतिष्ठा प्राम करने की प्रमिलाषासे कदर्थना प्राप्त कर उसके न मिलनेसे संवत रहा करता है। अरे साधु ! गुण तो कस्तूरीके समान है, कि वह जिसके पास होवी है वहाँ अपने आप महक उठती है, प्रतएव व्यर्थ भटकना बोड दे और अपने कर्तव्यको पूरा करनेका प्रयास कर | यदि तेरेमें योग्यता होगी तो तेरी ख्याति निःसन्देह अपने आप सर्वत्र फैल जायगी। योगवहन करनेसे मन-वचन-कायापर योग्य अंकुश लगना योगवहनका सामान्य हेतु है ।
योगवहनकी क्रियामें अमुक विधि और तपस्या करनेके पश्चात् पाठ पढ़नेका आदेश मिलता है, उसको उद्देश कहा जाता है । इससे अधिक योग्यता होनेपर गुरुमहाराज उस पाठका पुनरावर्तन करने और स्थिर करने तथा उस विषयमें शंका समाधान आदि बातचीत करनेकी आज्ञा देते हैं यह समहेश । इससे भी अधिक योग्यता होनेपर उन्हीं पाठोंको पढ़ानेकी, सुनानेकी और उसका चाहें जीस प्रकार उपयोग करनेकी आज्ञा देते हैं वह अनुशा कहलाती है-ये तीनों बाते स्मरणमें रखने योग्य हैं।
१ योगचूर्णः-पुद्गलकी अनन्त शक्ति है । दो वस्तुओंके संयोमसे अथवा बहुतसी . वस्तुओंके संयोगसे इसप्रकारके चूर्ण बना दे जा सकते हैं कि जिससे अनेकों चमत्कार बतलाये जा सकते हैं । दृष्टान्तके रूपमें इस चूर्णको पानी में डालनेसे मच्छियोंकी उत्पति होती है, सिंहका रूप धारण करे, जल मार्ग दे दे आदि आदि अनेकों आश्चर्ययुक्त घटनायें हो सकती हैं ! पुद्गलमें अनन्तशक्ति है यह वस्तु विज्ञानशास्त्र ( Chemistry )के अभ्यासीकी समझमें शिघ्रतमा पा सकती है।