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अधिकार) . यतिशिक्षा
( 028 है यह विचार करनेसे अपने आप मालूम हो जाता है। ये पांचों लोक अवश्य मनन करने योग्य हैं। “वर्तनरहित लोकरंजन, बोधिवृक्षकी कुल्हाडी,
: संसारसमुद्र में पतन. किं लोकसत्कृतिनमस्करणार्चनाये,
रे मुग्ध ! तुष्यसि विनापी विशुद्धयोगान् । कृन्तन् भवान्धुपतने तव यत्प्रमादो, बोधिद्रुमाश्रयमिमानि करोति पशुन् ॥ ७॥
" तेरे त्रिकरण योग विशुद्ध नहीं है फिर भी मनुष्य तेरा भादरसत्कार करते हैं, तुझे नमस्कार करते हैं अथवा तेरी पूजासेवा करते हैं, तब हे मूढ़ ! तूं क्यो संतोष मानता है ? संसारसमुद्र में गिरते हुए तुझे एकमात्र बोधिवतका आधार है उस वचको काटनेके लिये नमस्कारादिसे होनेवाला सन्तोषादि प्रमाद इसके (लोकसत्कार आदि) लिये कुन्हाडारुप होता है।"
वसंततिलका. विवेचन-मनकी अस्थिरता कम न हुई, वचनपर अंकुश न लगा, कायाके योग काबुमें नहीं हैं फिर भी जब मनुष्य तेरी वन्दना, पूजन, भक्ति करते हैं तब तेरे मनमें आनंद प्राप्त होता है-यह कितना बुरा है ? हे साधु ! ऐसे वन्दन तथा पूजापर तेरा क्या अधिकार है ? तू थोड़ा-सा विचार कर कि यह संसार एक भीमकाय समुद्र है, इसमें जो डूबते हैं वे इसका अन्त अनन्तकाल तक भी नहीं पा सकते हैं, फिर भी यदि उससे बचनेके लिये बोधिवृक्ष-सम्यक्त्वतरु प्राप्त हो जाय तो रक्षा हो सकती है। परन्तु तुझे प्रमाद हो जाता है जिस शिथिलताके
१ वासक्षेप बरास आदि उत्तम गंघोंसे। .