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________________ अधिकारी यतिशिक्षा [८१ मलग अलग भेद करते हैं । प्रथम भेद दृष्टान्तरूपसे नीचे लिखे अनुसार होता है- "मनसे पाहारसंज्ञा रहित हो कर श्रोत्रंद्रियका संवरकर क्षमायुक्त हो पुथ्वीकायका प्रारम्भ न करे।" इस वाक्यको कायम रख जब 'क्षमायुक्त' शब्दके स्थान में 'मार्दवंयुक्त' आदि दश धर्मोको ले तब दश भेद होते हैं, परन्तु वे सब पृथ्वीकायके विषयके ही होते हैं । उनका जब अप्काय आदि उपर बतलाये दश भेदोंके साथ दस इस भेद किये जावे तो सौ भेद होते हैं। ये सब प्रोत्रंद्रियके भेद हुए, और इसीप्रकार शेष चार इन्द्रियों के साथ मिलानेसे पांचसो भेद होते हैं। उनमेंसे प्रत्येकको आहार, भय, परिग्रह और मैथुन संज्ञाके साथ रखने से दो हज़ार भेद होते हैं। मन, वचन, कायाके योगके साथ रखनेसे छ हज़ार भेद होते हैं और उसको करने, कराने और अनुमोदन करना इन तीनों करण के साथ रखनेसे अठारह हज़ार भेद होते हैं। ___ इन भेदोंके विषयमें श्री प्रवचनसारोद्धार प्रन्थके पृष्ट ३३९ में (प्रकरणरत्नाकर तीसरे भागको देखें ) एक कोष्टक दिया हुआ है जिसकी ऐसी खुबी है कि उसपर दृष्टिपात करनेसे १८००० गाथा बन सकती है। जिज्ञासुओंको उसे अवश्येमव पढ़ना चाहिए क्योंकि, वह अत्यन्त उपयोगी है तथा प्रन्थकर्ता की अपूर्व विद्वत्ता बताता है । मोक्षार्थी जीवको उपर लिखे अनुसार व्यवहार करना चाहिये । तू न स्वाध्याय ही करता है, न समिति-गुप्ति ही रखता है; अपितु नहिवत् ( नजेवा ) कारणसे कषाय किया करता है और तपस्या नहीं करता है, इसी प्रकार परिषह उपसर्ग आदि भी सहन नहीं करता है; और किसी भी शीलांगको धारण नहीं करता है । तूं जानता है कि मोक्ष जानेका उपाय तो उपर लिखे .
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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