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अधिकार ] गुरुशुद्धिः [४५७ संपत्ति प्रदान करते हैं।" ... उपजाति.
विवेचन-१ दाक्षिण्य-अर्थात् मनकी उच्चतासे अनजान पुरुषके भी अनुकूळ हो जानेकी मनकी सरलता दाक्षिण्य में स्वतंत्रताका.नाश नहीं होता है, परन्तु उसके स्थानमें सरलताका महान सद्गुण प्राप्त होता है । श्रावकके गुणों में ' दाक्षिण्य ' को एक गुण कहा गया है और उसकी व्याख्या करते हुए उसका शुभ मार्गका व्यस्थापन यहां बताया गया है। ...
२ लज्जापन-इस गुणसे व्यर्थ स्वतंत्रताका नाश होता है और विनयका संचय होता है । विशेषतया स्त्रियोंमें यह गुण भूषणरूप है और पापकार्यों में प्रतिबंधरूप होकर स्त्री-पुरुष दोनोंके लिये अतिशय लाभदायक है। ... ३ गुरुदेवपूजा-द्रव्य और भावसे अवलम्बनकी आवश्यकता सर्व जीवोंको बहुत रहती है । गुरुके वचनानुसार वर्तन करना यह भी पूजा है और भावनाके लिये हृदय समक्ष और चतु समक्ष भावमय और स्थूल साकार वृत्तिये निराकार पद प्राप्त करनेके लिये उन गुणोंको प्राप्त करनेवाले भगवानका ध्यान करना, अर्चन करना बहुत उपयोगी है, अत्यन्त आवश्यक है, और अत्यन्त लाभदायक है।
४ पित्रादिभक्तिः-धर्मकार्यमें बाधा न पड़े इसे ध्यान में रखकर मातापिता आदिकी अनन्य चित्तसे भक्ति करना चाहिये । उनको सन्तोष पहुंचाना प्रत्येक सुपुत्रका कर्तव्य है । आदि शब्दमें प्रत्येक बड़े पुरुषोंका समावेश हो जाता है। .... ..... ५ सुकृताभिलाषा-अच्छे कार्य करना, बारम्बार करना और उनका चिन्तन करते रहना । कार्यक्रम यह है कि प्रथम
१ धर्मरल-प्रथम भाग-सातमा गुण देखीये ।। .५०