________________
४२४ ]
अध्यात्मकल्पद्रुम [एकादश वस्त्रोंसे आच्छादित होता है तभीतक सुन्दर प्रतीत होता है। उसीप्रकार सुकृत्य ढके हुए होते हैं तभीतक अधिक सौभाग्य प्राप्त कराते हैं । गुप्त सुकृत्य करते समय करनेवालोंको अत्यन्त शांति देते हैं और उनका स्मरण करनेसे आत्मिक सन्तोष होता है । इससे प्रगट होता है कि प्रत्येक कार्यका आत्मिक सृष्टिपर कैसा प्रभाव होगा वह विचार करने की आवश्यकता इससे मालूम हो जाती है । मानकीर्तिसे कदाच थोड़े समयतक स्थूल आनंद प्राप्त हों, परन्तु अपूर्व आत्मिक शांति-जिसको प्राप्त करनेके लिये सर्व मुमुक्षु प्रयास करते हैं-वह तो शान्त स्थितिमें शान्त रहकर किये हुए शान्त कार्योंसे ही प्राप्त हो सकती है ।
किसी भी कारणसे क्यों न हो परन्तु प्रचलित व्यवहार इससे बिलकुल ऊलटा हो गया है ऐसा सर्वथा नहीं तो भी नन्यानवें प्रति सैकड़ा तो देखा ही जाता है । एक पुरुषको एक लाख रुपये खर्चनेकी अभिलाषा हुई कि वह खर्च करनेसे पहले ही उसके लिये ढोल-नगारे बजानेका प्रयास करता हुआ नजर आता है । खर्च करनेका समय आता है तब उसे छोड़नेका मन नहीं करता है, परंतु व्याज खर्चनेकी अभिलाषा प्रगट करता है, समाचारपत्रों में बड़ी बड़ी रिपोर्ट भेजता अथवा भिजवाता है
और एक बार खर्च किये हुए पैसोंका चार-पांच बार भिन्न भिन्न रूपसे लाभ उठाता है । इसप्रकार बहुत-सा अप्रमाणिकपन पैदा करता है और अभिमानसे खर्च करता है। यह धन खर्च करनेकी एक हकिकत है, इसीप्रकार दूसरे अनुष्ठानोंके लिये भी समझ लेवें । जीवका अनादि स्वभाव अभिमान करनेका है वह येन केन प्रकारेण शुभ कृत्योंमें भी हो जाता है और उसका कारण वास्तविक तत्त्वगवेषणाका न होना ही है। विचार करनेसे मालूम होता है कि वस्तुस्वरूप इससे बिलकुल विपरित ही है।