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________________ अधिकार ] . [४२३ धीरे समझ सकेगा । अभ्यास डालने के लिये प्रथम उसे मानकी इच्छा की भी तृप्ति करना उचित है । विशेष समझदार प्राणी प्रथमसे ही यह बात समझ सकता है, और उसके कार्य किसी भी ऐहिक मनोविकारको तृप्त करनेके लिये नहीं होते हैं, परन्तु परम साध्य प्राप्त करनेके शुद्ध अध्यवसायसे उत्पन्न होते हैं । यह अन्तिम मार्ग परम इष्ट है, महाकल्याणप्रदक है, इसके प्रहण करने तथा ग्रहण करनेकी अभिलाषा तथा भावना रखनेका यहां उपदेश किया गया है। प्रशंसारहित सुकृत्यका विशिष्टपन. आच्छादितानि सुकृतानि यथा दधन्ते, 'सौभाग्यमत्र न तथा प्रकटीकृतानि । व्रीडानताननसरोजसरोजनेत्रावक्षःस्थलानि कलितानि यथा दुकूलैः ॥९॥ "इस संसारमें गूढ पुण्यकर्म-सुकृत्य जिस प्रकार सौभाग्य प्राप्त कराते हैं उस प्रकार प्रगट किये सुकृत्य नहीं प्राप्त करा सकते हैं। जिसप्रकार कि लज्जासे झुकाया है मुखकमल जिसने ऐसी कमलनयना स्त्रीके स्तन-मण्डल वस्त्रसे भाच्छादित होने पर जितनी शोभा देते हैं उतनी शोमा खुले हुए होने पर नहीं दे सकते हैं।" वसंततिलका. विवेचन-संसारमें खानगी (गुप्त ) धर्म करनेवाले सचमुच लाभ उठाते हैं । दुनिया चाहें उनके गुणकी स्तुति करे या न करे वे इसकी परवाह नहीं रखते हैं। कंचुकी पहिनकर ऊपरसे साडी ओढ़ने पर स्त्रीके हृदय भागकी जो शोभा उसे देखनेवाले पुरुषको मालूम होती है उतनी शोभा स्तनोंके खुले हुए होनेपर नही होती है । अपना खुदका शरीर मी जपतक
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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