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________________ अधिकार ] कषायत्याग [ २६१ है । दृष्टान्तकी सत्यताको देखनेके स्थानमें सदैव उनसे प्रकाशित भाव अत्यन्त विचारने योग्य है । देवकृत मंत्र, चमत्कार . या अन्य कोई बात स्थूलवादके इस जमानेमें चाहें गले न भी उतरे वो भी उसपर विचार करनेकी अगत्य नहीं है। किन्तु प्रत्येक दृष्टान्तमें एक अद्भुत भाव है और वह यह कि ऐसा मनुष्य भव अत्यन्त कष्ट सहनेपर प्राप्त हुआ है और फिर मिलना महादुर्लभ है । जिसके परिणामस्वरूप मनुष्यभवको सफल बनानेका मुख्यतया उपदेश है । धर्मसामग्री मुख्यतया मनुष्यभवमें ही प्राप्य है जिससे इन सब दृष्टान्तोंकी उपयोगिता सिद्ध होती है । इस सबका प्रयोजन यह है कि धर्मका महत्व समझकर कषाय न करना चाहिये और ऐसा करने निमित्त उसके सहचारी पांच इन्द्रियों के २३ विषयोंका विशेषतया परित्याग करदेना चाहिये । कषायके सहचारी प्रमादका त्याग. चौरैस्तथा कर्मकरैहिते, दुष्टैः स्वमात्रेऽप्युपतप्यसे त्वम् । पुष्टैः प्रमादैस्तनुभिश्च पुण्य, धनं न कि वेत्स्यपि लुट्यमानम् ॥ २० ॥ __“चोर अथवा कामकाज करनेवाले ( नौकर-चाकर ) जब तेरा थोडासा भी धन व्यय कर देते हैं तब तो तूं क्रोधः के मारे लाल लाल हो जाता है, किन्तु पुष्ट अथवा पतले प्रमाद तेरा पुण्यधन लूट लेते हैं वह तो तूं जानता भी नहीं है ?" - उपजाति. .... विवेचन-घरमें थोड़ीसी चोरी हो जाने पर हाहाकार मचा दिया जाता है, पुलिस बुलाई जाती है, सजा दिलाई जाती है और कानून हाथमें लेकर चोरकी हड्डी-पसली दीली कर
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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