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________________ प्राब्लम ( Problem ) करते हों, अंकगणित ( Arithmetic ) या बीजगणित ( Algebra ) का एक कठिन प्रश्न हल करते हों तब मनकी एकाग्रता होती है, संसारको सब उपाधियोंकों भूला देते हो और एक प्रभमय होजाते हों और तब प्रश्नपर एकाग्रता रख कर धीरे धीरे आगे बढ़ते जाते हो और तब अन्तमें पूर्ण प्रत्युत्तर बराबर प्राप्त कर लेते हो । इसमें प्रारम्भसे अन्त तक जो आनन्द होता है उसको यदि एक बिन्दु तुल्य समझा जावे तो मोषसुखकी समुद्रसे तुलना दे सकते हैं । ऐसे निर्दोष आनन्दको प्राप्त करनेकी बहुत आवश्यकता है अतः उसके विरोधी विषयानन्दका जिसमें वस्तुतः कुछ भी भानन्द नहीं है त्याग करना अत्यावश्यक है। दुःख देनेवाले कारणों का निश्चय. मुंक्त कथं नारकतिर्यगादि दुःखानि देहीत्यवधेहि शास्त्रैः। निवर्तते ते विषयेषु तृष्णा, बिभेषि पापप्रचयाच्च येन ॥४॥ “यह जीव नारकी, तिथंच आदिके दुःख क्यों भोगता है ? इसका कारण शास्त्रमें भलि भाँति प्रकट है जिसको पद जिससे विषयपर तृष्णा कम होगी और पाप एकत्र न होगें" उपजाति. विवेचमः- " नास्कीमें रहनेवाले जीवोंको ऐसी क्षुधा बेसी है कि चौदह राजमोकन्यापी सर्व पुद्गलोंका भक्षण करने पर भी उनकी सृप्ति नहीं होती, सर्व समुद्रोके जलको पान करने
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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